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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: आर्थिक शोषण भी घरेलू हिंसा में शामिल

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामलों में आर्थिक शोषण को भी शामिल किया है। अदालत ने कहा कि घर में महिलाओं का उत्पीड़न साबित करना कठिन होता है। जस्टिस कीर्ति सिंह ने स्पष्ट किया कि आर्थिक शोषण का अर्थ है वैधानिक अधिकारों से वंचित करना। कोर्ट ने पत्नी और बच्चों के लिए भरण-पोषण और आवास सहायता का आदेश दिया है। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के बारे में और क्या कहा गया है।
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: आर्थिक शोषण भी घरेलू हिंसा में शामिल

महिलाओं का उत्पीड़न साबित करना होता है कठिन


पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामलों पर गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि घर के भीतर महिलाओं का उत्पीड़न साबित करना अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है। कोर्ट ने आर्थिक शोषण को भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में रखा है। जस्टिस कीर्ति सिंह ने कहा कि अदालतों को शिकायतों का मूल्यांकन करते समय बारीकी से देखना आवश्यक है, क्योंकि अधिकांश उत्पीड़न घर के अंदर होता है और इसे साबित करना पीड़िताओं के लिए कठिन होता है।


आर्थिक शोषण की परिभाषा

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आर्थिक शोषण का अर्थ है वैधानिक या पारंपरिक अधिकारों से वंचित करना, चाहे वह अदालत के आदेश से हो या किसी अन्य कारण से। जस्टिस कीर्ति सिंह ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 में शारीरिक, यौन, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक और आर्थिक हिंसा को शामिल किया गया है।


पति का संवादहीनता और बच्चों की देखभाल में लापरवाही

इस मामले में पति-पत्नी के संबंधों को स्वीकार किया गया। निचली अदालतों ने पत्नी को पीड़िता मानते हुए उसके भावनात्मक और आर्थिक उत्पीड़न को स्वीकार किया। कोर्ट ने माना कि पति घर में रहते हुए भी पत्नी से संवाद नहीं करता था और बच्चों की देखभाल में रुचि नहीं लेता था। पत्नी ने बताया कि पति ने कुछ खर्चे जैसे शिक्षा और बिजली बिल चुकाए, लेकिन इससे भावनात्मक शोषण की भरपाई नहीं होती।


पारिवारिक विवादों का प्रभाव बच्चों पर

हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक विवादों का सबसे अधिक बोझ बच्चों पर पड़ता है। इसलिए अदालतों को तकनीकी दृष्टिकोण से हटकर ऐसे मामलों का निपटारा करना चाहिए ताकि सभी पक्षों के हित में न्याय हो सके।


भरण-पोषण और आवास सहायता का आदेश

कोर्ट ने गुरुग्राम की अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए पत्नी और दो बेटियों के लिए मासिक भरण-पोषण और आवास सहायता को सही ठहराया। आदेश के अनुसार, पत्नी और बच्चों को 40,000 रुपये मासिक आवास सहायता और बेटियों को 20,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण मिलेगा।


भरण-पोषण की अवधि

हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि बेटियों को भरण-पोषण केवल वयस्क होने तक मिलेगा। इसके बाद वे अन्य विधियों के तहत राहत ले सकती हैं।