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पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ता तापमान: एक गंभीर चेतावनी

एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि पर्वतीय क्षेत्रों, विशेषकर हिमालय, में तापमान तेजी से बढ़ रहा है। यह वृद्धि जल-सुरक्षा और पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गर्मी का स्तर वैश्विक औसत से डेढ़ गुना तेजी से बढ़ रहा है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि 21वीं सदी में तापमान में और वृद्धि की संभावना है। जानें इस अध्ययन के प्रमुख बिंदुओं और इसके संभावित परिणामों के बारे में।
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पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ता तापमान: एक गंभीर चेतावनी

ग्लोबल वार्मिंग का पर्वतीय क्षेत्रों पर प्रभाव


हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि विश्व के पर्वतीय क्षेत्र, जिनमें हिमालय भी शामिल है, 1950 के बाद से वैश्विक औसत तापमान की तुलना में लगभग 50% तेजी से गर्म हो रहे हैं। 'नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट' में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, ऊंचाई के साथ तापमान, सूखापन और बर्फ के पिघलने की गति में वृद्धि हो रही है। यह एक अरब से अधिक लोगों की जल-सुरक्षा, पारिस्थितिकी और बाढ़ के खतरों पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.


वैज्ञानिकों की चेतावनी

वैज्ञानिकों ने पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ते तापमान को लेकर नई चेतावनी जारी की है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में बताया गया है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गर्मी का स्तर वैश्विक औसत से लगभग डेढ़ गुना तेजी से बढ़ रहा है। हिमालय और अन्य पर्वतमालाओं में बर्फ और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी और करोड़ों लोगों की जल-आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.


पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान वृद्धि का रुझान

अध्ययन में यह भी बताया गया है कि 1980 से 2020 के बीच पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान वृद्धि का रुझान निचले क्षेत्रों की तुलना में प्रति सदी 0.21 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इस दौरान पर्वतों में 11.5 मिमी प्रति सदी की अतिरिक्त सूखापन और 25.6 मिमी प्रति सदी की बर्फ की कमी देखी गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऊंचाई के साथ जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो जाती है, जिसे 'elevation-dependent climate change' कहा जाता है.


गर्मी के बढ़ने के कारण

वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तेजी से गर्म होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे सतही अल्बीडो में कमी, वायुमंडल में नमी का परिवर्तन और एरोसोल की अधिकता। एरोसोल, जो भारत और चीन जैसे मैदानी क्षेत्रों से पर्वतों तक पहुंचते हैं, बर्फ पर बैठकर पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं.


पारिस्थितिकी पर प्रभाव

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सभी पर्वत श्रृंखलाएं समान गति से प्रभावित नहीं होतीं। वैज्ञानिकों के अनुसार, सबसे तेज बदलाव उन ऊंचाइयों पर हो रहा है जहां बर्फ की परत पीछे हट रही है। हिमालय, आल्प्स और तिब्बती पठार में कई स्थानों पर स्नो लाइन ऊपर खिसक रही है, जिससे मध्यम ऊंचाइयों पर तापमान और सूखे का प्रभाव अधिक महसूस किया जा रहा है.


जलवायु परिवर्तन का खतरा

दुनिया के एक अरब से अधिक लोग पर्वतीय बर्फ और ग्लेशियरों से मिलने वाले जल पर निर्भर हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालयी बर्फ की कमी अनुमान से कहीं अधिक तेज हो रही है। तापमान में वृद्धि से बारिश में वृद्धि का खतरा है, जिससे अचानक बाढ़ की संभावना बढ़ सकती है. पेड़-पौधे और जानवर भी ऊंचाई की ओर खिसक रहे हैं, लेकिन अंततः कई प्रजातियों के पास आगे बढ़ने की जगह नहीं बचेगी, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में गंभीर परिवर्तन हो सकता है.


भविष्य की संभावनाएं

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 21वीं सदी में पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 0.13 डिग्री सेल्सियस प्रति सदी की और गर्मी बढ़ने की संभावना है। हालांकि, वर्षा में होने वाले बदलावों के बारे में वैज्ञानिक अभी निश्चित नहीं हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की यह तेज रफ्तार पर्वतीय समुदायों के साथ-साथ वैश्विक जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी को भी प्रभावित कर सकती है.