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पवन कल्याण ने टिकट की कीमतों पर उठाया सवाल, न्याय की लड़ाई का किया जिक्र

पवन कल्याण ने हैदराबाद में अपनी आगामी फिल्म 'हरि हर वीरा मल्लू' के प्री-रिलीज इवेंट में टिकट की कीमतों पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि उनकी फिल्म के टिकट 10 रुपए में बिके, जबकि अन्य की कीमत 100 रुपए थी। पवन ने न्याय की लड़ाई की बात करते हुए अपने प्रशंसकों की ताकत का भी जिक्र किया। यह फिल्म उनके उपमुख्यमंत्री बनने के बाद की पहली फिल्म होगी, जो 24 जुलाई को रिलीज होगी।
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पवन कल्याण ने टिकट की कीमतों पर उठाया सवाल, न्याय की लड़ाई का किया जिक्र

पवन कल्याण का बयान

हैदराबाद: आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और अभिनेता पवन कल्याण ने पूर्व वाईएसआरसीपी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उनकी फिल्म के टिकट की कीमत 10 रुपए रखी गई, जबकि अन्य कलाकारों की फिल्मों के टिकट 100 रुपए में बिके।


सोमवार रात हैदराबाद में अपनी नई फिल्म 'हरि हर वीरा मल्लू' के प्री-रिलीज इवेंट में बोलते हुए, पवन ने कहा कि उनकी लड़ाई पैसे या रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि न्याय के लिए है।


यह फिल्म 24 जुलाई को रिलीज होने वाली है और यह उनके उपमुख्यमंत्री बनने के बाद की पहली फिल्म होगी।


उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी एकमात्र गलती एक फ्लॉप फिल्म देना था, जिसके बाद उन्हें पहले जैसी सफलता नहीं मिली। डायरेक्टर त्रिविक्रम की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने 'जलसा' जैसी हिट फिल्म दी।


पवन ने बताया कि उनकी फिल्म 'भीमला नायक' के समय भी उनके टिकट 10-15 रुपए में बिके, जबकि अन्य के 100 रुपए में। उन्होंने कहा, “यह पैसे की नहीं, साहस और न्याय की लड़ाई थी।”


पवन ने कहा कि वह रिकॉर्ड बनाने की कोशिश नहीं करते, बल्कि एक सामान्य इंसान की तरह जीना चाहते हैं। उन्होंने अपने प्रशंसकों को अपनी ताकत बताते हुए कहा, “मेरे 30 साल के फिल्मी करियर में मैं आज इस मुकाम पर हूं तो सिर्फ प्रशंसकों की वजह से। मेरे पास न हथियार हैं, न गुंडे, सिर्फ मेरे प्रशंसक हैं।”


उन्होंने 'गब्बर सिंह' के समय को याद करते हुए कहा कि एक प्रशंसक की हिट फिल्म की गुजारिश को डायरेक्टर हरीश शंकर ने पूरा किया। 'जॉनी' फ्लॉप होने के बावजूद प्रशंसकों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। पवन ने बताया कि उन्होंने रिश्तों को महत्व देते हुए अपनी फीस लौटा दी थी।


'हरि हर वीरा मल्लू' के लिए पवन ने मार्शल आर्ट्स दोबारा सीखा। उन्होंने मजाक में कहा कि राजनीति में असली गुंडों का सामना करना आसान है, लेकिन कैमरे के सामने यह करना मुश्किल था। उन्होंने निर्माता ए.एम. रत्नम का समर्थन किया, जिन्होंने पांच साल की चुनौतियों के बाद फिल्म पूरी की।