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पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर तृणमूल कांग्रेस की चिंता

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, जिससे तृणमूल कांग्रेस में बेचैनी बढ़ गई है। ममता बनर्जी और पार्टी के अन्य नेताओं ने इस मुद्दे पर चिंता जताई है, खासकर एनआरसी के संभावित प्रभाव को लेकर। जानें इस विषय पर और क्या कहा गया है और तृणमूल कांग्रेस की रणनीतियाँ क्या हैं।
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पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर तृणमूल कांग्रेस की चिंता

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का पुनरीक्षण

बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। इसको लेकर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में बेचैनी बढ़ गई है। ममता बनर्जी ने कोलकाता में इस मुद्दे पर लगातार दो दिन बयान दिए हैं, जबकि पार्टी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन और सागरिका घोष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर बिहार में चल रहे मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे अलोकतांत्रिक करार दिया और यह भी पूछा कि चुनाव आयोग इतनी जल्दी यह कार्य कैसे पूरा करेगा। तेजस्वी यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 2003 में मतदाता सूची के पुनरीक्षण में दो साल लगे थे, जबकि उस समय मतदाता की संख्या साढ़े चार करोड़ से अधिक थी। तृणमूल कांग्रेस ने इस पुनरीक्षण के माध्यम से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू होने की आशंका भी जताई है.


नागरिकता पर संदेह

यह आशंका काफी हद तक सही प्रतीत हो रही है, क्योंकि बिहार में पुनरीक्षण कर रहे चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा है कि जो मतदाता जन्म प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे, उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे। इसके साथ ही उनकी जानकारी सरकार को दी जाएगी, ताकि उनकी नागरिकता की जांच की जा सके। इसका मतलब है कि जिनके नाम हटाए जाएंगे, उनकी नागरिकता पर भी सवाल उठ सकता है। अगले साल पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव होने हैं, और इन राज्यों में एनआरसी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि यहां बांग्लादेशी घुसपैठियों और शरणार्थियों की संख्या काफी अधिक है। तृणमूल कांग्रेस को यह चिंता है कि यदि चुनाव आयोग ने कुछ विधानसभा क्षेत्रों में लक्षित तरीके से मतदाताओं के नाम हटाए, तो इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, और भाजपा का आरोप है कि इनमें से बड़ी संख्या बांग्लादेशी और रोहिंग्या की है। इनका वोट आमतौर पर तृणमूल को जाता है। यदि हर क्षेत्र में 10 से 20 हजार नाम कट जाते हैं, तो तृणमूल को इसका बड़ा नुकसान होगा। हालांकि, बिहार के विपरीत, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेता अधिक जागरूक और सक्रिय हैं। वे सुनिश्चित कर रहे हैं कि नाम आसानी से न कटें। पिछले कुछ महीनों से वे घर-घर जाकर स्थिति की जांच कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि चूंकि राज्य सरकार ममता बनर्जी की है, इसलिए आवश्यक होने पर सरकार सभी के लिए जन्म प्रमाणपत्र जारी कर सकती है।