पाकिस्तान और ईरान: एक साझा वैचारिक संघर्ष

पाकिस्तान और ईरान की वैचारिक प्रतिबद्धता
पाकिस्तान और ईरान की वैचारिक सोच एक समान है। इसीलिए, जब इजराइल-यहूदी अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिए सभ्यता युद्ध में लगे हैं, तब भारत-हिंदू भी पाकिस्तान की उत्पत्ति से जुड़ी विषाक्त मानसिकता के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
इजराइल-ईरान संघर्ष का इतिहास
हाल ही में इजराइल और ईरान के बीच युद्धविराम हुआ है, लेकिन यह कितने समय तक टिकेगा, यह संदेहास्पद है। यह लड़ाई 13 जून से शुरू होकर 24 जून को थम गई, लेकिन इसका टकराव तब से शुरू हुआ जब इजराइल ने लगभग 80 साल पहले खुद को एक स्वतंत्र यहूदी राष्ट्र घोषित किया। यह संघर्ष केवल दो देशों का नहीं, बल्कि यहूदी, ईसाई और इस्लाम के बीच का है।
धार्मिक संघर्ष का प्रभाव
यह धार्मिक संघर्ष, जिसने सैकड़ों वर्षों में लाखों निर्दोषों की जान ली, उस सोच का परिणाम है जो मानती है कि 'सिर्फ उनका ईश्वर ही सच्चा है।' यरुशलम का इतिहास इसी टकराव से भरा पड़ा है।
पाकिस्तान की भूमिका
हालिया इजराइल-ईरान युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका को समझते हुए, यह कहा जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को मोर बना दिया। जब अमेरिका ने ईरान पर बमबारी की, तब पाकिस्तान के नेता ने राष्ट्रपति ट्रंप को 'रणनीतिक दूरदर्शी' बताया।
भारत की कूटनीतिक स्थिति
भारत के लिए ईरान और इजराइल दोनों ही कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के निमंत्रण को ठुकरा दिया, जबकि पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी।
इस्लामी उम्माह की वास्तविकता
यह स्पष्ट है कि इस्लामी 'उम्माह' केवल एक कल्पना है। कई मुस्लिम देश फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं, लेकिन अपने हितों के लिए उन्हें धोखा देने में संकोच नहीं करते।
अहमदिया मुसलमानों का योगदान
अहमदिया मुसलमानों ने पाकिस्तान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन बाद में उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया। यह विडंबना है कि जिस पाकिस्तान के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वही अब उन्हें भेदभाव का सामना कराता है।
आतंकवाद का उपयोग
पाकिस्तान और ईरान दोनों ही अपने-अपने लक्ष्यों के लिए आतंकवाद का सहारा लेते हैं। इसीलिए, इजराइल विरोधी आतंकवादी संगठन ईरान के संरक्षण में हैं।