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पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच नई रक्षा संधि: क्या है इसका प्रभाव?

पाकिस्तान और सऊदी अरब ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण रक्षा संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें एक देश पर हमले की स्थिति में दूसरे देश की प्रतिक्रिया का प्रावधान है। इस समझौते के तुरंत बाद पाकिस्तान पर बलूच लिबरेशन आर्मी द्वारा बड़ा हमला हुआ है, जिसमें कई सैनिक मारे गए हैं। इसके अलावा, तालिबान के एक नेता ने पाकिस्तान सरकार को कठपुतली बताते हुए विवादास्पद बयान दिया है। इस लेख में इन घटनाओं का विश्लेषण किया गया है और क्षेत्रीय सुरक्षा पर इसके संभावित प्रभावों पर चर्चा की गई है।
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पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच नई रक्षा संधि: क्या है इसका प्रभाव?

पाकिस्तान और सऊदी अरब की रक्षा संधि

17 सितंबर को, पाकिस्तान और सऊदी अरब ने ऑपरेशन सिंदूर के 132 दिन बाद एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार, यदि एक देश पर हमला होता है, तो दूसरा देश इसे अपने खिलाफ हमले के रूप में मान लेगा। सऊदी अधिकारियों का कहना है कि इस करार में सभी सैन्य विकल्पों का उपयोग किया जा सकता है। दोनों देशों का यह भी कहना है कि यह समझौता किसी तीसरे देश को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है। भारत के साथ संबंधों को नजरअंदाज करते हुए पाकिस्तान का समर्थन करने का सऊदी अरब का निर्णय कई लोगों के लिए समझ से परे है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस पूरे मामले में अमेरिका की भूमिका भी हो सकती है।


पाकिस्तान पर हमले की घटनाएँ

दिलचस्प बात यह है कि इस डील के तुरंत बाद पाकिस्तान पर एक बड़ा हमला हुआ। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने पाकिस्तान के 13 से अधिक सैनिकों को मार डाला है। यह हमला सऊदी अरब के साथ हुई डील के बाद का पहला बड़ा हमला है। बलूचों ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान पर और भी हमले किए जाएंगे। इस बीच, अफगानिस्तान के एक प्रभावशाली व्यक्ति ने पाकिस्तान के खिलाफ जिहाद को मुसलमानों का नैतिक कर्तव्य बताया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि अफगानिस्तान से भी पाकिस्तान पर हमलों की संभावना बढ़ रही है।


तालिबान का बयान और पाकिस्तान के संबंध

हाल ही में, तालिबान द्वारा नियुक्त विश्वविद्यालय के चांसलर मोहम्मद नसीम हक्कानी ने पाकिस्तान सरकार को कठपुतली बताते हुए कहा कि उसके कानून यहूदियों और ईसाइयों के प्रभाव में हैं। हालांकि, अमू टीवी इस टिप्पणी के समय या स्थान की पुष्टि नहीं कर सका। तालिबान प्रशासन और उच्च शिक्षा मंत्रालय ने इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। क्षेत्रीय विश्लेषकों का कहना है कि ये टिप्पणियाँ महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि पाकिस्तान लंबे समय से तालिबान को समर्थन देने के आरोपों का सामना कर रहा है। तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से पाकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।