पाकिस्तान का नया शांतिपूर्ण रुख: भारत की सैन्य कार्रवाई का असर

पाकिस्तान का बदलता रुख
पाकिस्तान, जो अक्सर अपने परमाणु हथियारों की धमकियों से अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करता रहा है, अब अचानक शांति की बातें करने लगा है। हाल ही में भारत द्वारा आतंकवादी ठिकानों पर की गई सर्जिकल कार्रवाई, जिसे ऑपरेशन सिंदूर कहा गया, के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बयानों में स्पष्ट बदलाव देखा गया है।
भारत की कार्रवाई का प्रभाव
भारत की सटीक और कठोर सैन्य कार्रवाई ने पाकिस्तान को न केवल सैन्य स्तर पर बल्कि कूटनीतिक रूप से भी झटका दिया है। अब शहबाज शरीफ यह स्वीकार करने लगे हैं कि उनका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों और आत्मरक्षा के लिए है। यह वही पाकिस्तान है, जो पहले युद्ध की धमकियों के लिए जाना जाता था।
ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को झकझोरा
भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में स्थित नौ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। भारतीय सेना ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों पर सटीक हमले किए।
शहबाज शरीफ का नया बयान
ऑपरेशन सिंदूर के बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस्लामाबाद में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उनका परमाणु कार्यक्रम आक्रामक नहीं है, बल्कि यह केवल आत्मरक्षा और शांति के लिए है। यह बयान पाकिस्तान के लंबे समय से परमाणु ताकत की शेखी बघारने के विपरीत है।
शांति की बातें और नुकसान की स्वीकृति
शरीफ ने स्वीकार किया कि भारत के साथ सैन्य टकराव में पाकिस्तान को नुकसान उठाना पड़ा, जिसमें 55 पाकिस्तानी नागरिक मारे गए थे। उन्होंने कहा कि उनके देश ने "पूरी ताकत" से जवाब दिया, लेकिन परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का कोई इरादा नहीं था। यह बयान भारत की सैन्य रणनीति के प्रभाव को दर्शाता है।
नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें
पाकिस्तानी मीडिया में चर्चा थी कि सेना प्रमुख असीम मुनीर को राष्ट्रपति बनाया जा सकता है। इस पर शरीफ ने स्पष्ट किया कि न तो असीम मुनीर की ऐसी कोई मंशा है और न ही राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के इस्तीफे की कोई योजना है।
भारत की रणनीति का असर
भारत की आक्रामक और सटीक सैन्य रणनीति ने न केवल आतंकवाद पर सीधा वार किया, बल्कि पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब पाकिस्तान के सुर बदल चुके हैं और शांति की बातें उसकी मजबूरी बन गई हैं।