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पाकिस्तान की आर्थिक जनगणना: मस्जिदों और मदरसों की बढ़ती संख्या का चिंताजनक संकेत

पाकिस्तान की हालिया आर्थिक जनगणना रिपोर्ट ने एक चिंताजनक तस्वीर पेश की है, जिसमें मस्जिदों और मदरसों की संख्या कारखानों से कहीं अधिक है। यह स्थिति न केवल धार्मिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि पाकिस्तान का सामाजिक ढाँचा किस दिशा में बढ़ रहा है। जैश-ए-मोहम्मद का धनसंग्रह अभियान भी इस स्थिति को और गहरा करता है। जानें कैसे ये घटनाएँ पाकिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित कर रही हैं।
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पाकिस्तान की आर्थिक जनगणना: मस्जिदों और मदरसों की बढ़ती संख्या का चिंताजनक संकेत

पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर नई रिपोर्ट

पाकिस्तान की हालिया आर्थिक जनगणना ने एक चिंताजनक स्थिति को उजागर किया है। आँकड़ों के अनुसार, देश में कारखानों की संख्या 23,000 है, जबकि मस्जिदों की संख्या 6.04 लाख और मदरसों की संख्या 36,000 से अधिक है। यह आंकड़ा न केवल धार्मिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि पाकिस्तान का सामाजिक ढाँचा किस दिशा में बढ़ रहा है। दूसरी ओर, आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद मस्जिदों और मरकज के निर्माण के नाम पर अरबों रुपये इकट्ठा कर रहा है। ये घटनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि पाकिस्तान में धार्मिक संस्थानों की बढ़ती संख्या और आतंकवाद का तंत्र आपस में कैसे जुड़े हुए हैं।


शिक्षा और उद्योग की स्थिति

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पाकिस्तान में शिक्षा संस्थानों की संख्या भी अच्छी है, जिसमें 2.42 लाख स्कूल, 11,568 कॉलेज और 214 विश्वविद्यालय शामिल हैं। लेकिन इनकी तुलना में मस्जिदों और मदरसों की संख्या कहीं अधिक है। इसके अलावा, उद्योग और उत्पादन की स्थिति बेहद कमजोर है, जहाँ केवल 7,000 से अधिक इकाइयाँ हैं जिनमें 250 से अधिक लोग काम करते हैं। इसका मतलब है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था छोटे कारोबारों और सेवा क्षेत्र पर निर्भर है, जबकि उत्पादन क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। यह असंतुलन पाकिस्तान की वित्तीय कमजोरी को दर्शाता है, जो IMF से कर्ज की किस्तों के लिए जूझ रहा है।


जैश-ए-मोहम्मद का धनसंग्रह अभियान

जैश-ए-मोहम्मद ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुए नुकसान के बाद 313 नए मरकज और मस्जिदों के निर्माण के लिए 3.91 अरब रुपये जुटाने का अभियान शुरू किया है। इस अभियान में डिजिटल वॉलेट और सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। यह दर्शाता है कि पाकिस्तान में मस्जिदों का जाल फैला हुआ है और इन्हीं के माध्यम से आतंकवादी ढाँचे का पुनर्निर्माण हो रहा है।


पाकिस्तान की प्राथमिकताएँ

पाकिस्तान सरकार और सेना पर लंबे समय से यह आरोप है कि वे आतंकवादी संगठनों को समर्थन देते हैं। वर्तमान में, सरकार उन इमारतों के पुनर्निर्माण के लिए धन मुहैया कराने को तैयार है जो भारतीय हमलों में नष्ट हुई थीं, जबकि आम जनता महँगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है। यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की प्राथमिकताएँ शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग नहीं, बल्कि धार्मिक प्रतिष्ठान और आतंकवादी इन्फ्रास्ट्रक्चर बन गई हैं।


भारत के लिए संकेत

इन दोनों घटनाओं से भारत के लिए दो महत्वपूर्ण संकेत निकलते हैं। पहला, पाकिस्तान की सामाजिक संरचना में मस्जिदें और मदरसे केवल धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि आतंकवादी संगठनों के लिए जनबल और वित्त जुटाने का माध्यम भी हैं। दूसरा, जब तक पाकिस्तान अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं को उद्योग और रोजगार की ओर नहीं मोड़ेगा, तब तक धार्मिक उन्माद और आतंकवाद उसकी अर्थव्यवस्था और राजनीति पर हावी रहेंगे।


निष्कर्ष

पाकिस्तान की आर्थिक जनगणना और जैश-ए-मोहम्मद का धनसंग्रह अभियान यह दर्शाते हैं कि वहाँ की राज्य व्यवस्था, धार्मिक कट्टरवाद और आतंकवाद का गठजोड़ किस तरह देश के भविष्य को प्रभावित कर रहा है। कारखानों की तुलना में मस्जिदों और मदरसों की अधिकता केवल धार्मिक झुकाव का संकेत नहीं है, बल्कि यह उस मानसिकता का प्रमाण है जिसमें विकास और रोजगार पीछे छूट गए हैं। यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी त्रासदी है और भारत के लिए एक बड़ा खतरा है।