पाकिस्तान की चाल: क्या परेश बरुआ को बांग्लादेश में पुनर्स्थापित करेगा?
सुरक्षा चेतावनी: परेश बरुआ का बांग्लादेश में पुनर्स्थापन
नई दिल्ली: भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक नई सुरक्षा चेतावनी सामने आई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान चीन में मौजूद उल्फा के प्रमुख परेश बरुआ को बांग्लादेश के ढाका में पुनर्स्थापित करने की योजना बना रहा है। यह कदम क्षेत्रीय राजनीति और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है, खासकर बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक बदलावों के बाद जब पाकिस्तान और चीन का प्रभाव बढ़ा है।
परेश बरुआ: एक परिचय
परेश बरुआ, जिन्हें परेश असम के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे वांटेड उग्रवादी नेताओं में से एक हैं और ULFA-I (United Liberation Front of Asom-Independent) के 'कमांडर-इन-चीफ' हैं। यह संगठन असम को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र राज्य की मांग करता रहा है।
ULFA की स्थापना 1979 में हुई थी और यह दशकों से पूर्वोत्तर में हिंसात्मक संघर्षों और उग्रवादी गतिविधियों में संलग्न रहा है। जबकि संगठन का एक हिस्सा शांति वार्ता के तहत केंद्र और असम सरकार के साथ समझौता कर चुका है, बरुआ का कट्टर गुट इससे अलग रहा और उसने हथियारबंद संघर्ष जारी रखा है।
चीन में शरण और पाकिस्तान की भूमिका
परेश बरुआ लंबे समय से चीन-म्यांमार सीमा के निकट युन्नान प्रांत में छिपे हुए हैं, जहां उन्हें कथित तौर पर संरक्षण प्राप्त है। चीन की गुप्त सेवाओं के साथ उनकी बातचीत और समर्थन ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और सैन्य प्रतिष्ठान बांग्लादेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, खासकर ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद। यह प्रयास पाकिस्तान की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें पूर्वोत्तर भारत में पुरानी उग्रवादी संरचनाओं को पुनर्जीवित करना और उन्हें बांग्लादेश से भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करना शामिल है।
बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति
बांग्लादेश में 2024 में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद शेख हसीना की सरकार के पतन के साथ बदलते राजनीतिक परिदृश्य ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नई अंतरिम सरकार में कट्टरपंथी शक्तियों की सक्रियता और पाकिस्तान-चीन का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पाकिस्तान सफल होता है और बरुआ को ढाका ले जाता है, तो पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद के पुराने नेटवर्क फिर से सक्रिय हो सकते हैं, जिसमें हथियारों की आपूर्ति, भर्ती और संगठन विस्तार शामिल हैं।
भारत की प्रतिक्रिया और रणनीति
भारत ने पहले भी ULFA और अन्य उग्रवादी समूहों के खिलाफ कड़ी नीति अपनाई है, जिसमें सुरक्षा बलों के साथ-साथ कूटनीतिक दबाव और सीमा निगरानी भी शामिल है। बांग्लादेश और चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, भारत ने अपनी कूटनीति और सामरिक तैयारियों को भी मजबूत किया है।
