पाकिस्तान की सेना आतंकवादियों को देगी प्रशिक्षण, जैश, लश्कर और हिजबुल पर होगा सीधा नियंत्रण

पाकिस्तान की नई रणनीति
नई दिल्ली - भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान नष्ट हुए आतंकवादी ठिकानों को फिर से सक्रिय करने के लिए पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार ध्यान जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन पर केंद्रित है। इन तीनों आतंकवादी संगठनों के संचालन को बेहतर बनाने के लिए पाकिस्तानी सेना नए सदस्यों को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है।
नए प्रशिक्षण शिविरों का संचालन
पाकिस्तानी सेना ने अपने अधिकारियों को इन आतंकवादी समूहों के नए सदस्यों को प्रशिक्षित करने के लिए तैनात करने का निर्णय लिया है। पहले, आतंकवादी शिविरों का संचालन प्रशिक्षित कमांडरों द्वारा किया जाता था, लेकिन अब एक मेजर रैंक का अधिकारी इन शिविरों का नेतृत्व करेगा। इसके साथ ही, पाकिस्तानी सेना इन शिविरों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगी और हर ऑपरेशन पर सीधी निगरानी रखेगी। इसके अलावा, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रही है।
आधुनिक तकनीक का उपयोग
आईएसआई यह सुनिश्चित कर रही है कि नए शिविरों में पारंपरिक हथियारों के बजाय आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए। आतंकवादी समूहों को उच्च तकनीक वाले ड्रोन और डिजिटल युद्ध के साधनों से लैस किया जाएगा। पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों की भर्ती से लेकर प्रशिक्षण तक हर गतिविधि की निगरानी कर रही है, और उन्हें ऐसे हथियार मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है जो सीधे भारत पर दागे जा सकें।
भविष्य की रणनीति
इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं। पहला, आईएसआई नहीं चाहती कि किसी भारतीय अभियान के दौरान इन शिविरों पर फिर से हमला हो। दूसरा, पाकिस्तान चाहता है कि उसके आतंकवादी समूहों के पास भारत पर हमला करने की क्षमता हो। तीसरा, वह भारतीय सेना का ध्यान इन समूहों से भटकाए रखना चाहता है ताकि बलूचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी (बीएलए) और तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) से निपट सके। बलूचिस्तान में सुरक्षा के मामले में पाकिस्तान ने अमेरिका और चीन के साथ जो प्रतिबद्धताएं की हैं, उन्हें देखते हुए वह भारतीय सेना के साथ बातचीत करने के बजाय टीटीपी और बीएलए पर ध्यान केंद्रित करना चाहेगा।
आर्थिक दबाव और सुरक्षा
पाकिस्तान ने चीन से यह वादा किया है कि वह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना 2.0 (सीपीईसी) की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। इसके लिए उसे टीटीपी और बीएलए पर नियंत्रण रखना होगा। पाकिस्तान की गिरती अर्थव्यवस्था के कारण अमेरिका के साथ खनिज समझौता महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, चीन ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि यदि वह सीपीईसी 2.0 का हिस्सा बनना चाहता है तो उसे धन जुटाना होगा। इस स्थिति में, पाकिस्तानी सेना अपने तीन आतंकवादी समूहों में भारी निवेश कर रही है।
भविष्य की योजनाएँ
आईएसआई ने प्रत्येक आतंकवादी समूह पर सालाना कम से कम 100 करोड़ रुपये का निवेश करने का निर्णय लिया है ताकि उन्हें भारत पर सीधे हमला करने में सक्षम अत्याधुनिक हथियार मिल सकें। पाकिस्तानी सेना के आतंकवादी ठिकानों की हर गतिविधि को सीधे नियंत्रण में लेने के लिए इन समूहों के प्रमुखों की भूमिका सीमित की जाएगी, जिसका उपयोग युवाओं को ब्रेनवॉश करने और उन्हें कट्टरपंथी बनाने में किया जाएगा।