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पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का विवादास्पद बयान: शिमला समझौता अब 'मृत दस्तावेज'

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक बयान दिया है जिसमें उन्होंने शिमला समझौते को 'मृत दस्तावेज' करार दिया है। उनका यह बयान भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर नई बहस को जन्म दे सकता है। आसिफ ने कहा कि नियंत्रण रेखा अब केवल एक युद्धविराम रेखा बनकर रह गई है, जिसे नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में घोषित किया था। इस बयान ने नेहरू की नीतियों पर भी सवाल उठाए हैं, जो भारत के लिए दीर्घकालिक प्रभाव डालती हैं।
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पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का विवादास्पद बयान: शिमला समझौता अब 'मृत दस्तावेज'

ख्वाजा आसिफ का बयान

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक बयान दिया है, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक शिमला समझौते को लेकर नई बहस को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि यह समझौता अब एक 'मृत दस्तावेज' बन चुका है और इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई है। यह बयान एक पाकिस्तानी समाचार चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम के दौरान आया, जिसमें उन्होंने नेहरू की नीतियों पर भी सवाल उठाए।


शिमला समझौते का महत्व

आसिफ ने कहा कि नियंत्रण रेखा (LoC) अब केवल एक युद्धविराम रेखा बनकर रह गई है, जिसे नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में घोषित किया था। उनका यह बयान 1972 में हुए शिमला समझौते को लेकर एक नई बहस को जन्म दे सकता है, जो कश्मीर के विवादित क्षेत्र को लेकर एक महत्वपूर्ण समझौता था।




नेहरू की नीतियों पर बहस

शिमला समझौते के अनुसार, भारत और पाकिस्तान ने यह सहमति जताई थी कि वे कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाएंगे और नियंत्रण रेखा को एक अस्थायी सीमा के रूप में मान्यता देंगे। हालांकि, ख्वाजा आसिफ का यह बयान इस समझौते की प्रासंगिकता पर सवाल उठाता है।


नेहरू की नीतियों को लेकर भारत में लंबे समय से बहस होती रही है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि नेहरू के कुछ निर्णयों ने भारत को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित किया है। ख्वाजा आसिफ का बयान नेहरू की उस नीति पर आधारित है, जिसमें उन्होंने 1947-48 के युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव में युद्धविराम की घोषणा की थी, जिसके परिणामस्वरूप नियंत्रण रेखा का निर्माण हुआ।