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पाकिस्तान के राष्ट्रपति की चीन यात्रा: रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की हालिया चीन यात्रा ने वैश्विक कूटनीति में महत्वपूर्ण चर्चाएँ छेड़ दी हैं। बीजिंग में उनके दौरे के दौरान, उन्होंने अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों का अवलोकन किया और चीन-पाकिस्तान के संबंधों में नई गहराई का संकेत दिया। यह यात्रा न केवल पाकिस्तान की सुरक्षा चुनौतियों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि चीन अब पाकिस्तान के साथ दीर्घकालिक सामरिक साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। जानें इस यात्रा के पीछे के रणनीतिक संकेत और भारत के लिए इसके संभावित प्रभाव।
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पाकिस्तान के राष्ट्रपति की चीन यात्रा: रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय

चीन में राष्ट्रपति जरदारी की ऐतिहासिक यात्रा

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की हालिया यात्रा ने वैश्विक कूटनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण चर्चाएँ शुरू कर दी हैं। बीजिंग ने राष्ट्रपति जरदारी के लिए अपने गुप्त सैन्य परिसर, एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ चाइना (AVIC) के दरवाजे खोले, जो केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संकेत था। इस कदम से चीन ने यह स्पष्ट किया कि पाकिस्तान उसके लिए केवल एक आयातक नहीं, बल्कि रक्षा उत्पादन और सामरिक सहयोग में एक विश्वसनीय साझेदार है। जरदारी इस विशाल परिसर का दौरा करने वाले पहले विदेशी नेता बने हैं।




पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, जरदारी ने एवीआईसी का दौरा किया, जहां उन्हें अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों की जानकारी दी गई, जिसमें नए लड़ाकू विमानों जैसे जे-10 और जे-20 का समावेश था। इसके साथ ही, जेएफ-17 थंडर परियोजना, जो चीन और पाकिस्तान की संयुक्त उपलब्धि है, पर भी चर्चा हुई। मानव रहित हवाई वाहन, स्वचालित सैन्य इकाइयाँ और आधुनिक कमांड-कंट्रोल प्रणालियाँ भी इस दौरे का हिस्सा रहीं।




यह यात्रा चीन-पाकिस्तान के संबंधों को नई ऊँचाई पर ले जाती है, जिसमें चीन ने पाकिस्तान की सुरक्षा चुनौतियों को अपनी जिम्मेदारी मानने का संकेत दिया है।




जरदारी की यात्रा से पहले, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर भी बीजिंग गए थे, जहां मुनीर ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह यात्रा पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व की चीन पर निर्भरता को दर्शाती है। इन घटनाओं के पीछे भारत का ऑपरेशन सिंदूर है, जिसने पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया था, जिससे पाकिस्तान की कमजोरी उजागर हुई।




जरदारी ने शंघाई में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के स्मारक पर जाकर चीन की वैश्विक भूमिका को सम्मानित किया और पाकिस्तान-चीन की "हर मौसम की दोस्ती" की सराहना की। यात्रा के दौरान पाकिस्तान-चीन चैंबर ऑफ कॉमर्स की स्थापना का प्रस्ताव भी रखा गया, जो दर्शाता है कि चीन अब पाकिस्तान में केवल आर्थिक निवेश तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि दीर्घकालिक सामरिक साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।




यह स्थिति भारत के लिए गंभीर संकेत है। एक ओर, भारत आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर रहा है, वहीं दूसरी ओर, पाकिस्तान अपने सुरक्षा तंत्र को चीन की तकनीक से सुसज्जित करना चाहता है। चीन इस सहयोग के माध्यम से अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्व और भारत की क्षेत्रीय भूमिका को चुनौती देने की नीति पर कार्यरत है। जरदारी को गुप्त सैन्य परिसर में पहुँच प्रदान करना दक्षिण एशिया को यह संदेश देता है कि पाकिस्तान अब अकेला नहीं है।




चीन के विदेश मंत्रालय ने जरदारी के दौरे को अधिक महत्व नहीं दिया, बल्कि वैश्विक सुरक्षा सहयोग (जीएसआई) के प्रति अपने समर्थन की बात की।




इस यात्रा से यह स्पष्ट होता है कि चीन-पाकिस्तान संबंध एक नए मोड़ पर पहुँच गए हैं। यह गठजोड़ अब "हर मौसम की दोस्ती" से आगे बढ़कर "हर मोर्चे की साझेदारी" बनता जा रहा है, जो भारत के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। सवाल यह है कि क्या भारत अपनी कूटनीतिक और रक्षा रणनीति को इस बदलते परिदृश्य के अनुसार पुनर्गठित करेगा?