पाकिस्तान ने भारत से सिंधु जल संधि की बहाली की मांग की
पाकिस्तान ने भारत से आग्रह किया है कि वह सिंधु जल संधि को तुरंत बहाल करे। पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने हालिया न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि भारत को इस संधि के संचालन में एकतरफा कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। भारत ने पहले ही इस संधि को स्थगित कर दिया था, जिसके बाद पाकिस्तान ने भारत से अपने दायित्वों का पालन करने की अपील की है। इस मुद्दे पर पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री ने भी अपनी बात रखी है।
Jul 1, 2025, 14:21 IST
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सिंधु जल संधि की बहाली की अपील
पाकिस्तान ने भारत से अनुरोध किया है कि वह सिंधु जल संधि को तुरंत बहाल करे। सोमवार को पाकिस्तान के विदेश कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का हालिया निर्णय यह दर्शाता है कि यह संधि पूरी तरह से वैध और सक्रिय है। 27 जून को मध्यस्थता अदालत द्वारा दिए गए पूरक निर्णय का उल्लेख करते हुए पाकिस्तान ने कहा, "भारत को इस संधि के कार्यान्वयन में किसी भी प्रकार की एकतरफा कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।"
इस बयान के माध्यम से पाकिस्तान ने भारत से संधि के प्रति अपने दायित्वों का ईमानदारी से पालन करने की अपील की है। उल्लेखनीय है कि भारत ने पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले के एक दिन बाद सिंधु जल संधि को स्थगित करने की घोषणा की थी। यह संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली के जल के बंटवारे के लिए हुई थी।
हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक और सैन्य मोर्चों के साथ-साथ जल प्रबंधन के स्तर पर अपनी रणनीतिक प्रतिक्रिया को तेज कर दिया, जिसके तहत सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया। भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसने पाकिस्तान के साथ विवाद समाधान के जिस ढांचे की बात की जा रही है, उसे कभी मान्यता नहीं दी। स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को भी भारत ने खारिज कर दिया है, जिसमें दो पनबिजली परियोजनाओं की डिजाइन को लेकर पाकिस्तान की आपत्तियों पर सुनवाई की गई थी।
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, "मध्यस्थता अदालत का निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि सिंधु जल संधि कानूनी रूप से वैध है। भारत इसे मनमाने तरीके से स्थगित नहीं कर सकता।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि, "अंतरराष्ट्रीय संधियों का सम्मान सभी देशों की ज़िम्मेदारी है और इनका पालन न केवल शब्दों में बल्कि भावना के साथ भी होना चाहिए।"