Newzfatafatlogo

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू महिला का अपहरण: क्या है सरकार की भूमिका?

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक विवाहित हिंदू महिला का अपहरण कर जबरन धर्मांतरण का मामला सामने आया है। पीड़िता के परिवार ने स्थानीय एनजीओ की मदद से अपनी व्यथा साझा की है। आरोप है कि पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। इस घटना ने अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या पाकिस्तान सरकार इस पर ठोस कदम उठाएगी? जानिए पूरी कहानी।
 | 
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू महिला का अपहरण: क्या है सरकार की भूमिका?

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू महिला का अपहरण

एक बार फिर पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की एक महिला के अपहरण और जबरन धर्मांतरण का मामला सामने आया है। मीरपुरखास ज़िले के दिघरी क्षेत्र की एक विवाहित महिला को अगवा कर पहले इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया गया और फिर उसे एक मुस्लिम व्यक्ति से विवाह करने के लिए बाध्य किया गया। पीड़िता के परिवार का आरोप है कि यह सब उनकी सहमति के बिना किया गया।


परिवार की अपील और एनजीओ की भूमिका

अपहृत महिला के पति और उनके चार बच्चों ने स्थानीय एनजीओ 'दरावर इत्तेहाद पाकिस्तान' के कार्यालय में जाकर अपनी समस्या साझा की। यह संगठन सिंध में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करता है। संगठन के प्रमुख शिवा काछी ने बताया कि शहबाज खशखेली नामक व्यक्ति ने महिला का अपहरण किया और उसके बाद धर्म परिवर्तन कर उससे विवाह कर लिया। उन्होंने कहा, "यह न केवल एक महिला के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि पूरे अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा पर भी सवाल उठाता है।"


पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल

इस मामले में स्थानीय पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध है। शिवा काछी और महिला के पति ने आरोप लगाया कि पुलिस ने अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है और सहयोग नहीं कर रही है। मजबूरन परिवार को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। महिला के पति ने कहा, "यह कैसा न्याय है कि एक विवाहित महिला का अपहरण कर उसकी मर्जी के बिना धर्म परिवर्तन किया जाता है? क्या पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए कोई कानून नहीं है?"


धर्मांतरण की बढ़ती घटनाएं

पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। विशेष रूप से नाबालिग और विवाहित हिंदू लड़कियों को निशाना बनाकर इस्लाम कबूल करवाना और फिर मुस्लिम पुरुषों से विवाह कराना एक सामान्य प्रथा बन चुकी है। मानवाधिकार संगठनों ने इन मामलों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है, लेकिन पाक सरकार अब तक चुप्पी साधे हुए है।


कानूनों का अनुपालन

2019 में सिंध विधानसभा में जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक विधेयक पेश किया गया था, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में उसे खारिज कर दिया गया। यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता केवल कागजों पर है। वास्तविकता में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और सम्मान देने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।


अल्पसंख्यकों की आवाज़

इस घटना ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदुओं की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। सवाल यह है कि कब तक इन समुदायों की महिलाएं इस तरह बेबस रहेंगी? और कब पाकिस्तान सरकार इस पर ठोस कदम उठाएगी?