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पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा का नया मुख्यालय बनाने की तैयारी

पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालय का पुनर्निर्माण शुरू हो गया है, जो भारतीय सेना द्वारा *ऑपरेशन सिंदूर* में नष्ट किया गया था। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान इस नए परिसर का उद्घाटन 2026 में *कश्मीर एकजुटता दिवस* पर करने की योजना बना रहा है। इस लेख में जानें कि कैसे लश्कर राहत कार्यों के बहाने धन जुटा रहा है और इसके पीछे की सच्चाई क्या है।
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पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा का नया मुख्यालय बनाने की तैयारी

भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की नई योजना

नई दिल्ली: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान में *ऑपरेशन सिंदूर* का संचालन किया था। 7 मई की रात, भारतीय वायुसेना के मिराज लड़ाकू विमानों ने सीमा पार जाकर आतंकियों के ठिकानों पर प्रभावी कार्रवाई की। इस दौरान पंजाब के मुरीदके में स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का मुख्यालय *मरकज तैयबा* पूरी तरह नष्ट कर दिया गया था। अब पाकिस्तान इस आतंकवादी अड्डे को फिर से स्थापित करने की योजना बना रहा है।


भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार, पिछले महीने मरकज तैयबा के पुनर्निर्माण के लिए कई भारी मशीनें मुरीदके में भेजी गईं। 4 सितंबर को यहां स्थित *उम्म उल कुरआ* नामक पीला ब्लॉक गिरा दिया गया, और तीन दिन बाद लाल रंग की इमारत को भी ध्वस्त किया गया। सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान 5 फरवरी 2026 को *कश्मीर एकजुटता दिवस* के अवसर पर लश्कर के नए मुख्यालय का उद्घाटन कर सकता है। इससे पहले इमारत के पुनर्निर्माण का लक्ष्य रखा गया है, जो आतंकियों की ट्रेनिंग, ब्रेनवॉश और आतंकी गतिविधियों की योजना बनाने का केंद्र बनेगा।


लश्कर के सरगनों को पुनर्निर्माण का कार्य सौंपा गया है, जिसमें मौलाना अबू जार और उस्ताद उल मुजाहिद्दीन शामिल हैं। वहीं, कमांडर युनूस बुखारी को परिचालन निरीक्षण का कार्य सौंपा गया है। खुफिया जानकारी के अनुसार, अगस्त में पाकिस्तानी सरकार ने लश्कर को 4 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी। पूरे पुनर्निर्माण पर लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जो पाकिस्तान के आतंकवाद पर दोहरे रवैये को उजागर करता है।


इस समय पाकिस्तान के कई क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हैं। लश्कर-ए-तैयबा राहत कार्यों के नाम पर धन जुटा रहा है, और इसका एक बड़ा हिस्सा मुरीदके भेजा जा रहा है। इससे पहले, 2005 में आए भूकंप के दौरान लश्कर ने मानवीय सहायता के नाम पर अरबों डॉलर जुटाए थे, जिनमें से 80 प्रतिशत रकम अपने पास रख ली थी, और इन्हीं पैसों से मुरीदके मुख्यालय और कोटली में मरकज अब्बास का निर्माण किया गया था।