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पाकिस्तान में सैन्य सम्मान पर विवाद: असीम मुनीर का आत्म-सम्मान

पाकिस्तान में फील्ड मार्शल असीम मुनीर द्वारा खुद को हिलाल-ए-जुरात से सम्मानित करने के निर्णय ने विवाद खड़ा कर दिया है। इस कदम पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं, जहां कई यूजर्स ने इस पर तंज कसा है। जानें ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में इस सम्मान का क्या महत्व है और इसके पीछे की कहानी।
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पाकिस्तान में सैन्य सम्मान पर विवाद: असीम मुनीर का आत्म-सम्मान

पाकिस्तान में विवादास्पद सैन्य सम्मान

पाकिस्तान में एक विवादास्पद निर्णय की तीखी आलोचना हो रही है, जिसमें फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने खुद को हिलाल-ए-जुरात से सम्मानित किया है, जो देश का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य पुरस्कार है। यह सम्मान ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी सेना की हार के बाद दिया गया। यह पुरस्कार गुरुवार को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा प्रदान किया गया।


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत के साथ चार दिवसीय संघर्ष में पाकिस्तान ने कई सैन्य और असैन्य अधिकारियों को सम्मानित किया है। वायुसेना प्रमुख जहीर अहमद बाबर सिद्धू को हिलाल-ए-जुरात, नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ को निशान-ए-इम्तियाज और कई लड़ाकू पायलटों को सितारा-ए-जुरात से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी जैसे असैन्य नेताओं को भी सम्मानित किया गया है।


सोशल मीडिया पर मुनीर के आत्म-सम्मान की प्रतिक्रिया


असीम मुनीर के आत्म-सम्मान के खुलासे ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाओं और मीम्स की बाढ़ ला दी है। एक यूजर ने तंज करते हुए कहा, “वाह, असीम मुनीर का स्वयं को हिलाल-ए-जुर्रत देना सबसे बड़ा फ्लेक्स है! जब आप खुद को सम्मान दे सकते हैं, तो दूसरों की मान्यता की जरूरत ही क्या?” एक अन्य ने लिखा, “यह समझना मुश्किल है कि क्या ज्यादा प्रभावशाली है, खुद को पुरस्कार देना या हार के बीच में शीशा ढूंढ लेना।” एक और यूजर ने चुटकी लेते हुए कहा, “असीम मुनीर का हिलाल-ए-जुर्रत युद्ध में हारने के लिए भागीदारी ट्रॉफी जैसा है!”


ऑपरेशन सिंदूर का प्रभाव


यह ध्यान देने योग्य है कि 7 मई को शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने पहलगाम हमले का जवाब दिया, जिसमें 26 नागरिकों की जान गई थी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी शिविरों को निशाना बनाया। तीन दिन तक चले इस जवाबी हमले के बाद युद्धविराम हुआ। हालांकि, इस घटना ने पाकिस्तानी सेना की रणनीति और नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं।