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पानीपत में उपभोक्ता आयोग ने हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को 70 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया

पानीपत में जिला उपभोक्ता आयोग ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को उपभोक्ता नेत्रपाल सिंह को 70 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने कहा कि बीमाधारक ने सभी आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए और इलाज समय पर कराया। कंपनी ने अस्पताल के ब्लैकलिस्ट होने का बहाना बनाकर दावा खारिज किया था, जिसे आयोग ने अनुचित ठहराया। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और आयोग के आदेश के पीछे की वजह।
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पानीपत में उपभोक्ता आयोग ने हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को 70 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया

पानीपत: उपभोक्ता आयोग का महत्वपूर्ण निर्णय

पानीपत (हरियाणा): जिला उपभोक्ता आयोग ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को उपभोक्ता नेत्रपाल सिंह को 70 हजार रुपये का मेडिकल क्लेम ब्याज सहित चुकाने का आदेश दिया है।


आयोग ने स्पष्ट किया कि बीमाधारक ने समय पर इलाज कराया, सभी आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए और पॉलिसी वैध थी। ऐसे में अस्पताल के ब्लैकलिस्ट होने का बहाना बनाकर दावा खारिज करना अनुचित है।


शिकायतकर्ता ने आयोग को बताया कि उन्होंने अपनी बेटी सरिता के लिए 10 लाख रुपये की हेल्थ पॉलिसी और 10 हजार रुपये का दैनिक भत्ता वाला ऐच्छिक कवर लिया था। 24 मार्च 2023 को सरिता को तेज बुखार के कारण मैक्स प्लस अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज 29 मार्च तक चला।


कंपनी का दावा खारिज, उपभोक्ता को मिलेगा मुआवजा

इस इलाज पर कुल 70 हजार रुपये का खर्च आया। कंपनी ने यह कहते हुए दावा खारिज कर दिया कि अस्पताल नॉन-प्रेफर्ड यानी ब्लैकलिस्टेड है और ऐसे अस्पताल में इलाज पर भुगतान नहीं किया जाता। आयोग ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि कंपनी ने उपभोक्ता को कभी नहीं बताया कि अस्पताल ब्लैकलिस्ट है।


इसके अलावा, रिकॉर्ड में यह साबित नहीं हुआ कि शिकायतकर्ता ने कोई तथ्य छिपाया या गलत दस्तावेज प्रस्तुत किए। आयोग ने माना कि इलाज सही तरीके से हुआ और बीमा कंपनी ने बिलों की वास्तविकता पर कोई संदेह नहीं जताया।


आयोग ने कंपनी को निर्देश दिया कि वह शिकायतकर्ता को 70 हजार रुपये की राशि छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित शिकायत दायर करने की तारीख से अदा करें। इसके अतिरिक्त, मानसिक उत्पीड़न के लिए पांच हजार रुपये और मुकदमेबाजी खर्च के रूप में 5,500 रुपये देने होंगे। यदि निर्धारित 45 दिनों में आदेश का पालन नहीं किया गया, तो नौ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज लगाया जाएगा।