पितृ दोष: जानें इसके प्रकार और निवारण के उपाय

पितृ दोष का महत्व और प्रभाव
Pitru Dosh 2025, सिटी रिपोर्टर | नई दिल्ली : हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है, जो 15 दिनों तक चलता है। इस अवधि में लोग अपने पूर्वजों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करके संतुष्ट करते हैं। पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में प्रगति और सुख-शांति का अनुभव होता है, लेकिन यदि पितर नाराज हो जाएं, तो पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है। यह दोष परिवार में आर्थिक समस्याएं, स्वास्थ्य समस्याएं और रिश्तों में तनाव उत्पन्न कर सकता है। ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष के कई प्रकार बताए गए हैं, और प्रत्येक के लिए अलग-अलग उपाय भी हैं। आइए, पितृ दोष के प्रकार और उनके निवारण के उपायों के बारे में जानते हैं।
पितृ दोष की परिभाषा
पितृ दोष ज्योतिष में उस स्थिति को दर्शाता है जब पूर्वजों की आत्माएं असंतुष्ट रहती हैं। यह दोष तब उत्पन्न होता है जब पूर्वजों का अंतिम संस्कार सही तरीके से नहीं किया गया हो, पिंडदान या तर्पण नहीं किया गया हो, या उनका अनादर किया गया हो। कुंडली में राहु, सूर्य, केतु और शनि जैसे ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति भी पितृ दोष का कारण बन सकती है। इसके परिणामस्वरूप परिवार में कई पीढ़ियों तक आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारियाँ और बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
पितृ दोष के प्रकार
पितृ दोष को ज्योतिष शास्त्र और लाल किताब के आधार पर मुख्य रूप से दो प्रकार से समझा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष के 5 प्रकार हैं, जबकि लाल किताब में 10 प्रकार के कर्मों से जुड़े ऋण बताए गए हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृ दोष
सूर्यकृत पितृ दोष: यह तब होता है जब परिवार के बड़े सदस्यों के बीच मतभेद होते हैं और घर में क्लेश बना रहता है।
मंगलकृत पितृ दोष: छोटे सदस्यों के विचारों में टकराव और घर में अशांति इसके कारण बनती है।
कुंडली पितृ दोष: कुंडली में ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति से यह दोष उत्पन्न होता है।
स्त्री पितृ दोष: यह दोष महिलाओं से संबंधित होता है और संतान प्राप्ति में बाधा डाल सकता है।
शापित पितृ दोष: पूर्वजों के गलत कार्यों के कारण यह दोष उत्पन्न होता है, जो वंश पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
लाल किताब के अनुसार पितृ दोष
लाल किताब में पितृ दोष को 10 प्रकार के कर्मों से जुड़े ऋणों के रूप में देखा जाता है:
पुत्री ऋण: किसी पूर्वज द्वारा कन्या को सताने से यह दोष उत्पन्न होता है।
जालिमाना ऋण: पूर्वजों द्वारा धोखा देने या किसी का हक छीनने से यह दोष बनता है।
राहु का ऋण (अजन्मा ऋण): किसी रिश्तेदार से छल या निर्दोष को फंसाने से यह दोष उत्पन्न होता है।
केतु का ऋण: कुत्ते को मारने या संतान जन्म में बाधा डालने से यह दोष बनता है।
पूर्वजों का ऋण: पूर्वजों के अच्छे-बुरे कर्मों का परिणाम।
स्वयं का ऋण: व्यक्ति के वर्तमान जन्म के कर्मों से यह दोष उत्पन्न होता है।
पितृ का ऋण: पूर्वजों की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करने से।
मातृ का ऋण: मां के प्रति गलत व्यवहार से।
पत्नी का ऋण: पत्नी को कष्ट देने से।
संबंधियों का ऋण: रिश्तेदारों के साथ बुरा व्यवहार करने से।
पितृ दोष निवारण के उपाय
पितृ दोष से मुक्ति के लिए ज्योतिष में कई सरल उपाय बताए गए हैं। हर अमावस्या और पितृपक्ष में पितरों के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करें। पीपल के पेड़ में काले तिल और गंगाजल मिलाकर जल चढ़ाएं। रोजाना गीता का पाठ करें, और गंभीर मामलों में श्रीमद्भागवत के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ करें। भगवान शिव की आराधना करें और शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाएं। कौए, चिड़िया, गाय और कुत्ते को रोटी खिलाएं। घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं और पितरों की तस्वीर पर माला चढ़ाएं।