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पितृ पक्ष: श्रद्धा और परंपरा का महत्व

पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण समय है। यह 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर को समाप्त होता है। इस दौरान पितरों को तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें प्रसन्न किया जाता है। पितृ पक्ष में शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है, और इसे लक्ष्मी और ज्ञान की साधना के लिए उत्तम काल माना जाता है। जानें इस पावन अवसर का महत्व और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं।
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पितृ पक्ष: श्रद्धा और परंपरा का महत्व

पितृ पक्ष का महत्व

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष (श्राद्ध) को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है 'श्रद्धापूर्वक'। यह हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक तरीका है। सरल शब्दों में, दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु तिथि पर श्रद्धा के साथ याद करना ही श्राद्ध कहलाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से होती है और यह 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, उचित समय और स्थान पर पितरों के नाम पर जो वस्तुएं श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों को दी जाती हैं, उन्हें श्राद्ध कहा जाता है। पितृ पक्ष को हिंदू धर्म में 'महालय' या 'कनागत' भी कहा जाता है। इस दौरान पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मणों को भोजन कराने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।


पितृ पक्ष की परंपराएं

हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि पितृ पक्ष के दिनों में यमराज आत्माओं को मुक्त कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। इस दौरान पितर बिना किसी आव्हान के अपने वंशजों के घर आते हैं। यदि उन्हें तृप्त नहीं किया गया, तो उनकी आत्मा नाराज होकर लौट जाती है। माना जाता है कि यदि पितर नाराज हो जाएं, तो जीवन में कठिनाइयाँ आ सकती हैं। इसलिए शास्त्रों में पितरों का श्राद्ध विधिपूर्वक करना आवश्यक बताया गया है। यदि पितर प्रसन्न होकर लौटते हैं, तो उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। पितृ पक्ष के दौरान शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है।


पितृ दोष और तर्पण

ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को अशुभ माना गया है। पितृ पक्ष में तर्पण करने से पितृ दोष से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष में माता-पिता के प्रति तर्पण करके श्रद्धा व्यक्त की जाती है। पितृ ऋण से मुक्त हुए बिना जीवन निरर्थक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में पितरों से संबंधित कार्य करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।


श्राद्ध का फल

महर्षि जाबालि के अनुसार, अपने पितरों का श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पुत्र, आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। श्राद्ध पक्ष के दौरान कई कार्यों को निषेध माना गया है, जैसे दिन में सोना, असत्य बोलना, मदिरापान करना आदि। पितृ पक्ष को लक्ष्मी और ज्ञान की साधना के लिए उत्तम काल माना जाता है। श्रद्धा से किया गया श्राद्ध जीवन में उन्नति और प्रगति के द्वार खोल सकता है।