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पितृपक्ष की शुरुआत: श्राद्ध और तर्पण का महत्व

पितृपक्ष की शुरुआत 8 सितंबर से हो रही है, जो हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण के लिए महत्वपूर्ण समय है। इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की समृद्धि के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। जानें इस दिन की तिथियाँ, ग्रहों की स्थिति और शुभ मुहूर्त।
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पितृपक्ष की शुरुआत: श्राद्ध और तर्पण का महत्व

पितृपक्ष का महत्व

नई दिल्ली: हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। यह समय श्राद्ध और तर्पण जैसे धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और पिंडदान के माध्यम से संतुष्टि प्राप्त करते हैं।


श्राद्ध कर्म का आयोजन

इस अवसर पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष और परिवार की समृद्धि के लिए विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करते हैं। इस वर्ष, आश्विन मास का शुभारंभ 8 सितंबर को हो रहा है।


पंचांग के अनुसार तिथियाँ

पंचांग के अनुसार, 8 सितंबर को कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि रात्रि 9 बजकर 11 मिनट तक प्रभावी रहेगी। इसके बाद द्वितीया तिथि शुरू होगी। इस दिन पूर्व भाद्रपद नक्षत्र रात्रि 8 बजकर 2 मिनट तक और उत्तर भाद्रपद नक्षत्र प्रभावी रहेगा। दिन में धृति योग, शूल योग और गण्ड योग का क्रम बनता है।


ग्रहों की स्थिति

ग्रहों की स्थिति पर नजर डालें तो सूर्य सिंह राशि में है और चंद्रमा दोपहर 02:29 बजे तक कुंभ राशि में रहकर मीन राशि में प्रवेश करेगा। दिन का सूर्योदय 06:03 बजे और सूर्यास्त 06:34 बजे होगा, वहीं चंद्रोदय शाम 06:58 बजे और चंद्रास्त अगली सुबह 06:24 बजे होगा।


शुभ और अशुभ मुहूर्त

शुभ मुहूर्तों की बात करें तो ब्रह्म मुहूर्त 04:31 से 05:17 बजे तक है। अभिजीत मुहूर्त 11:53 से 12:44 बजे तक और विजय मुहूर्त 02:24 से 03:14 बजे तक है। वहीं, अशुभ समय में राहुकाल 07:37 से 09:11 बजे तक और गुलिक काल 01:52 से 03:26 बजे तक है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत वर्जित मानी जाती है।


पंचक का प्रभाव

इस दिन पंचक का प्रभाव भी रहेगा, जिसके कारण शुभ कार्यों, जैसे गृह निर्माण, विवाह या यात्रा को टालना उचित माना जाता है। दिशाशूल पूर्व दिशा में होने के कारण उस दिशा की यात्रा से बचने की सलाह दी जाती है।


श्राद्ध की धार्मिक परंपराएँ

श्राद्ध से जुड़ी धार्मिक परंपराओं के अनुसार, प्रतिपदा तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु इसी तिथि को हुई हो या जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। विशेष रूप से नाना-नानी या मातृ पक्ष के पितरों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है।


श्राद्ध करते समय ध्यान देने योग्य बातें

श्राद्ध करते समय घर की शुद्धि, गंगाजल का छिड़काव, दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण, और पवित्र भावना से ब्राह्मण भोज एवं दान देना आवश्यक है। दूध से बनी खीर, सफेद पुष्प, तिल, शहद, गंगाजल, और सफेद वस्त्र श्राद्ध में विशेष फलदायी माने जाते हैं। पंचबलि का अर्पण, गोदान, अन्न, और वस्त्र का दान पितरों को प्रसन्न करता है और परिवार में सुख-समृद्धि लाता है।