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प्याज की फसल 60 दिनों में तैयार करने के अनोखे तरीके

प्याज की खेती में तेजी लाने के लिए एक किसान ने 60 दिनों में फसल तैयार करने का अनोखा तरीका खोज निकाला है। राजस्थान के इंद्रपाल यादव ने नर्सरी से लेकर खेत तक के अपने विशेष प्रयोग से न केवल फसल की पैदावार बढ़ाई है, बल्कि बाजार में इसकी कीमत भी बढ़ाने में मदद की है। जानें इस तकनीक के बारे में और कैसे यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।
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प्याज की फसल 60 दिनों में तैयार करने के अनोखे तरीके

प्याज की खेती की विशेषताएँ


70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार
प्याज हर घर में एक आवश्यक सामग्री है, जिसका उपयोग सब्जी, मसाले और सलाद के रूप में किया जाता है। इसकी बढ़ती मांग के कारण, प्याज की खेती कई राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है, जैसे कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक।


किसानों को पता है कि प्याज की फसल को तैयार होने में लगभग 100 से 120 दिन लगते हैं। लेकिन एक किसान के विशेष प्रयोग के कारण, अब यह फसल केवल 60 दिनों में तैयार हो जाती है।


प्याज की नर्सरी की प्रक्रिया

किसान जानते हैं कि प्याज उगाने के लिए पहले नर्सरी में पौध तैयार करना होता है। बीजों को खेत में रोपने के लगभग 40 से 45 दिनों बाद पौधे तैयार हो जाते हैं, जिन्हें फिर खेतों में रोपित किया जाता है। इसके बाद नियमित देखभाल की जाती है और लगभग 100 से 120 दिनों में प्याज के कंद तैयार होते हैं।


इंद्रपाल यादव का प्रयोग

राजस्थान के अलवर जिले के किसान इंद्रपाल यादव ने 60 दिनों में प्याज उगाने का एक अनोखा तरीका विकसित किया है। उन्होंने नर्सरी में 45 दिन में तैयार हुए पौधों को 80 से 90 दिनों तक खेत में रखा और जब उन्हें उखाड़ा गया, तो छोटे-छोटे प्याज के कंद निकल आए।



  • 90 दिन बाद तैयार कंदों को ठंडी जगह पर स्टोर किया जाता है।

  • खरीफ सीजन में 15 अगस्त के आसपास खेतों की तैयारी की जाती है।

  • खेत में ऊंची मेड़ बनाकर कंदों की रोपाई की जाती है, जिससे उन्हें बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है।

  • विशेष देखभाल के बाद प्याज अक्टूबर में तैयार होने लगती है।

  • इस प्रक्रिया से औसतन 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है।


इस तकनीक के लाभ

इंद्रपाल यादव बताते हैं कि अक्टूबर-नवंबर में प्याज की आवक कम होती है, जिससे बाजार में इसकी कीमत बढ़ जाती है।


इसके अलावा, फसल जल्दी तैयार होने से किसानों को अधिक देखभाल और इंतजार नहीं करना पड़ता। इंद्रपाल ने इस तकनीक के बारे में कई किसानों को प्रशिक्षित किया है।