प्रधानमंत्री मोदी की बिहार में बढ़ती सक्रियता: चुनावी रणनीति पर ध्यान
बिहार में मोदी की चुनावी सक्रियता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले आठ महीनों में बिहार में अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया है। उन्होंने 9 जिलों और 82 विधानसभा सीटों का दौरा किया है। इनमें से 5 जिले ऐसे हैं, जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन (NDA) को लगभग 70% सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।मोदी का उद्देश्य स्पष्ट है: हार का सामना करने वाले क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना। इस वर्ष उन्होंने अब तक 7 जनसभाएँ की हैं, और जनवरी से मार्च को छोड़कर हर महीने कम से कम एक सभा आयोजित की है। बेगूसराय और पटना में रोड शो भी किए गए हैं।
बीजेपी और जेडीयू के प्रदर्शन के आंकड़े बताते हैं कि 9 जिलों में कुल 82 सीटों पर बीजेपी ने 44 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 29 पर जीत हासिल की (लगभग 66% स्ट्राइक रेट)। वहीं, जेडीयू ने 32 सीटों पर मुकाबला किया, जिसमें से केवल 8 पर सफलता मिली (लगभग 25%)।
हार-जीत के पैटर्न से यह स्पष्ट होता है कि मोदी केवल बीजेपी की हार हुई सीटों पर ही नहीं, बल्कि जेडीयू की हार हुई सीटों पर भी ध्यान दे रहे हैं।
इन जिलों में जातीय समीकरण और वोट बैंक की रणनीति महत्वपूर्ण है। EBC (अति पिछड़ी जातियाँ), कोइरी-कुर्मी, यादव, दलित-मल्लाह, भूमिहार-वैश्य जैसे समूह निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा हो रही है, और उन्होंने कमजोर जिलों में जाकर वोटरों में उम्मीद जगाने की कोशिश की है। जेडीयू में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो नीतीश की तरह EBC-वोटरों को आकर्षित कर सके।
प्रमुख जिलों की स्थिति: भागलपुर में यादव, कुर्मी, कोइरी और EBC का महत्व है। 7 सीटों में 2020 में NDA ने 5 जीती थीं। मधुबनी NDA का गढ़ माना जाता है, लेकिन बीजेपी ने जब अकेले चुनाव लड़ा, तब कम सफलता पाई। पटना में NDA को सबसे अधिक नुकसान हुआ, जहां 14 सीटों में से केवल 5 पर जीत मिली। रोहतास, सीवान, गया, पूर्णिया जैसे जिलों में EBC-वोट बैंक का दबदबा है, और यादव-मुस्लिम वोट भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।