प्रधानमंत्री मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर दी श्रद्धांजलि

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर श्रद्धांजलि
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी जन्म-जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को हुआ था, और वे एक प्रमुख राष्ट्रवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं। उनके विचारों ने भारत की एकता और अखंडता को बढ़ावा दिया है, जो आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करते हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, "राष्ट्र के अमर सपूत श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी जन्म-जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि। उन्होंने देश की आन-बान और शान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनके आदर्श और सिद्धांत एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण हैं।"
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इस अवसर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नमन किया। उन्होंने 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए कहा, "अपने प्रखर राष्ट्रवादी विचारों से मां भारती को गौरवान्वित करने वाले महान विचारक, करोड़ों कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्त्रोत, भारतीय जनता पार्टी के आधार स्तंभ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जन्म-जयंती पर उन्हें भावपूर्ण नमन करता हूं।"
जेपी नड्डा ने आगे कहा, "जम्मू-कश्मीर से दो विधान, दो निशान और दो प्रधान समाप्त करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक संघर्षरत रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने कश्मीर से धारा-370 हटाकर उनके स्वप्न को साकार किया है।"
भारतीय जनता पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का मानना था कि जम्मू-कश्मीर भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग होना चाहिए। उन्होंने संसद में धारा-370 को समाप्त करने की जोरदार वकालत की थी और एक नारा दिया था, "नहीं चलेगा एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान।"
अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर भारतीय संविधान की अधिकांश धाराएं लागू नहीं होती थीं, और किसी भी भारतीय नागरिक को वहां प्रवेश के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती थी, जिसका मुखर्जी ने विरोध किया।
अगस्त 1952 में जम्मू-कश्मीर की एक विशाल रैली में उन्होंने संकल्प लिया था कि "या तो मैं आपको भारतीय संविधान दिलाऊंगा या फिर इसके लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।"
1953 में, बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकलने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।