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बन्नी भैंस: गुजरात की अनोखी नस्ल और उसकी दूध उत्पादन क्षमता

बन्नी भैंस, गुजरात की एक अनोखी नस्ल है, जो 6054 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है। यह नस्ल अफगानिस्तान से आई थी और कच्छ क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। जानें इसके दूध उत्पादन, विशेषताएं और स्थानीय समुदायों के लिए इसका महत्व।
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बन्नी भैंस: गुजरात की अनोखी नस्ल और उसकी दूध उत्पादन क्षमता

बन्नी भैंस: गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर

Banni Buffalo: गुजरात की एक अनोखी नस्ल, 6054 लीटर दूध और अफगान संबंध: बन्नी भैंस (Banni Buffalo) कच्छ क्षेत्र की एक विशेष देसी नस्ल है, जो अपने पौष्टिक दूध उत्पादन और कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता के लिए जानी जाती है। यह भैंस लगभग 500 साल पहले अफगानिस्तान के हलीब क्षेत्र से मालधारी समुदाय द्वारा भारत लाई गई थी।


यह नस्ल 6054 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है और बन्नी घास के मैदानों में चरती है। यह न केवल दूध और खाद के उत्पादन में महत्वपूर्ण है, बल्कि गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। आइए, इस नस्ल की विशेषताओं पर एक नज़र डालते हैं।


बन्नी भैंस की उत्पत्ति और पहचान

बन्नी भैंस (Banni Buffalo) का इतिहास 500 साल पुराना है, जब इसे मालधारी समुदाय ने अफगानिस्तान से कच्छ के बन्नी क्षेत्र में लाया। इसका नाम बन्नी घास के मैदानों से लिया गया है। इस नस्ल का रंग काला या कॉपर-टोन होता है, और इसके घुमावदार सींग डबल या सिंगल कुंडली बनाते हैं।


मादा भैंसों की औसत ऊंचाई 137 सेमी और लंबाई 153 सेमी होती है। इसकी मजबूत संरचना इसे कठोर जलवायु में टिकाऊ बनाती है। बन्नी भैंसें खारी मिट्टी और गर्म मौसम में भी बिना किसी परेशानी के पनपती हैं, जो इनकी अनूठी विशेषता है।


दूध उत्पादन और उपयोग

बन्नी भैंस (Banni Buffalo) का दूध उत्पादन इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। यह एक ब्यांत में औसतन 2857.2 लीटर दूध देती है, और अधिकतम 6054 लीटर तक दर्ज किया गया है। इसके दूध में 6.65% वसा होता है, जो इसे पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाता है।


यह दूध दही, मट्ठा, और अन्य डेयरी उत्पादों के लिए आदर्श है। इसके अलावा, यह भैंस गोबर उत्पादन में भी योगदान देती है, जो खेती के लिए उपयोगी है। पहली ब्यांत की उम्र 40.3 महीने और ब्यांत अंतराल 12-24 महीने होता है। यह नस्ल स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक सहारा है।


पालन-पोषण और विशेषताएं

बन्नी भैंस को व्यापक प्रणाली में पाला जाता है। यह रात में बन्नी घास के मैदानों में चरती है और दिन में आराम करती है। एक झुंड में 15 से 150 भैंसें हो सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान इन्हें विशेष पोषक आहार दिया जाता है।


यह नस्ल अपनी सहनशक्ति और कम संसाधनों में जीवित रहने की क्षमता के लिए जानी जाती है। यह कच्छ की खारी मिट्टी और गर्म जलवायु में भी दूध उत्पादन में कमी नहीं करती। मालधारी समुदाय इसे पारंपरिक तरीकों से पालता है, जो इसकी सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाता है।


बन्नी भैंस (Banni Buffalo) गुजरात की जैव विविधता और डेयरी उद्योग की धरोहर है। इसे संरक्षित करने से न केवल किसानों को लाभ होगा, बल्कि भारत की देसी नस्लों को भी बढ़ावा मिलेगा।