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बांग्लादेश में कट्टरपंथ की नई लहर: क्या है इसके पीछे का सच?

बांग्लादेश में हालिया घटनाक्रमों ने देश को एक बार फिर कट्टरपंथी ताकतों की ओर धकेल दिया है। शरीफ ओस्मान हादी की हत्या के बाद ढाका में भड़के प्रदर्शनों ने राजनीतिक स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। क्या बांग्लादेश कट्टरपंथियों के हाथ में चला जाएगा? जानिए इस लेख में बांग्लादेश की राजनीति, कट्टरपंथी ताकतों और उनके प्रभाव के बारे में।
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बांग्लादेश में कट्टरपंथ की नई लहर: क्या है इसके पीछे का सच?

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल


राकेश सिंह | बांग्लादेश, जो कभी भारत की सहायता से स्वतंत्र हुआ था, अब फिर से चर्चा में है। इस बार यह खुशी का विषय नहीं, बल्कि चिंता का कारण है। दिसंबर 2025 में ढाका में फिर से प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। लोग आगजनी कर रहे हैं और सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। इस उथल-पुथल का कारण शरीफ ओस्मान हादी की मौत है, जो इंकलाब मंच के एक प्रमुख नेता थे। उनकी मृत्यु ने पूरे देश को हिला दिया है। सवाल यह है कि इसके पीछे क्या कारण हैं और कौन लोग इसमें शामिल हैं? सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश कट्टरपंथी ताकतों के हाथ में चला जाएगा?


बांग्लादेश में कट्टरपंथ की नई लहर: क्या है इसके पीछे का सच?
राकेश सिंह, प्रबंध संपादक, आईटीवी नेटवर्क।


बांग्लादेश की राजनीति हमेशा से उथल-पुथल में रही है। 1971 में भारत की मदद से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से यहां सत्ता के लिए संघर्ष जारी है। शेख हसीना की अवामी लीग सरकार लंबे समय तक सत्ता में रही, लेकिन 2024 में छात्रों का एक बड़ा आंदोलन हुआ। यह आंदोलन नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ, लेकिन बाद में यह सरकार विरोधी बन गया। लाखों लोग सड़कों पर उतर आए, जिससे हिंसा भड़की और अंततः हसीना को देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बनी, जो चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। फरवरी 2026 में चुनाव होने वाले हैं। इसी बीच अवामी लीग पर बैन लगाया गया, जो हसीना की पार्टी थी। यह बैन मई में लागू हुआ, जिसके खिलाफ भी काफी हंगामा हुआ।


12 दिसंबर 2025 को ढाका के बिजयनगर इलाके में शरीफ ओस्मान हादी पर हमला हुआ। उन्हें गोली मारी गई और गंभीर हालत में सिंगापुर ले जाया गया। 18 दिसंबर को उनकी मृत्यु हो गई। हादी इंकलाब मंच के कन्वीनर थे और 2024 के छात्र आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे। इंकलाब मंच खुद को एक क्रांतिकारी सांस्कृतिक प्लेटफॉर्म मानता है। हादी अवामी लीग और भारत के खिलाफ खुलकर बोलते थे। उनकी मौत की खबर फैलते ही ढाका में प्रदर्शन शुरू हो गए। लोग शाहबाग में इकट्ठा हुए और नारेबाजी की जैसे 'डिल्ली ना ढाका' और 'लीग धोरो, जेल भोरो'। कुछ स्थानों पर भारत विरोधी नारे भी लगे।


प्रदर्शन इतने उग्र हो गए कि लोगों ने अवामी लीग के कार्यालयों में आग लगा दी और शेख मुजीबुर रहमान के घर को भी जलाया। मीडिया हाउसों पर भी हमले हुए, संपादकों को पीटा गया और इमारतों में आग लगाई गई। अंतरिम सरकार ने सुरक्षा बढ़ा दी, लेकिन स्थिति नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। यूनुस ने शांति की अपील की, लेकिन प्रदर्शनकारी मानते हैं कि हादी की मौत एक साजिश है। इसके पीछे कौन है? यहां दो प्रमुख नाम सामने आते हैं: जमात-ए-इस्लामी और इंकलाब मंच। जमात-ए-इस्लामी एक पुरानी इस्लामिस्ट पार्टी है, जो 1971 में पाकिस्तान के साथ थी और आजादी के खिलाफ थी। हसीना सरकार ने इसे 2018 में बैन किया था, लेकिन 2024 के आंदोलन के बाद यह फिर से सक्रिय हो गई है।


जमात के अमीर शफीकुर रहमान ने अवामी लीग पर बैन लगाने की मांग की थी और अब वे प्रदर्शनों में शामिल हैं। उनका छात्र विंग, बांग्लादेश इस्लामी छत्र शिबिर, भी सड़कों पर उतरा है। वे कहते हैं कि अवामी लीग को समाप्त करना होगा और भारत के खिलाफ भी बोलते हैं। जैसे, एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर अब्दुल्लाहिल अमान आजमी, जो जमात से जुड़े हैं, ने कहा कि बांग्लादेश में शांति तभी आएगी जब भारत टूट जाएगा। यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इंकलाब मंच एक नया समूह है, जो 2024 के आंदोलन से निकला है। हादी इसके चेहरे थे, जो अवामी लीग को फासिस्ट कहते थे। अब हादी की मौत के बाद, मंच के लोग और जमात मिलकर प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि यह हमला आंतरिक साजिश हो सकती है, जिसमें जमात को फायदा हो।


यह एंटी अवामी और एंटी भारत सेंटिमेंट क्यों है? अवामी लीग को लोग हसीना की तानाशाही से जोड़ते हैं। आंदोलन में सैकड़ों लोग मारे गए और अवामी लीग को जिम्मेदार ठहराया जाता है। भारत के खिलाफ इसलिए क्योंकि हसीना भारत की करीबी थीं। प्रदर्शनकारी कहते हैं कि भारत ने आंदोलन को दबाने में मदद की और अब भी अवामी लीग का समर्थन कर रहा है। हिंदुओं पर हमले भी इसी से जुड़े हैं। 2024 के बाद हिंदुओं पर कई अटैक हुए, मंदिर तोड़े गए, क्योंकि उन्हें अवामी लीग समर्थक माना जाता है।


अब सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश कट्टरपंथियों के हाथ में चला जाएगा? खतरा तो है। जमात जैसी पार्टियां शरिया आधारित राज्य चाहती हैं। वे चुनाव में हिस्सा लेना चाहते हैं और भारत विरोधी सेंटिमेंट से वोट बटोरना चाहते हैं। लेकिन पूरा देश कट्टरपंथी नहीं है। छात्र आंदोलन सेकुलर था और यूनुस सरकार सुधारों की बात करती है। लेकिन अगर चुनाव में जमात मजबूत हुई, तो हालात बदल सकते हैं। भारत के लिए चिंता यह है कि बॉर्डर पर अशांति बढ़ेगी।


कुल मिलाकर, यह बवाल राजनीतिक है, लेकिन इसमें कट्टरवाद की मिलावट है। यूनुस सरकार अब तक पूरी तरह से फेल साबित हुई है। बांग्लादेश के लोगों को सोचना चाहिए कि आजादी भारत की मदद से मिली, लेकिन अब दुश्मनी क्यों? शांति से ही विकास होगा। भारत को भी सतर्क रहना चाहिए और डिप्लोमेसी बढ़ानी चाहिए। उम्मीद है कि यह तूफान जल्दी थमेगा और बांग्लादेश फिर से स्थिर होगा। लेकिन फिलहाल, सड़कों पर आग है और दिलों में गुस्सा। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)