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बिक्रमजीत सिंह मजिठिया ने हाई कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती दी

अकाली दल के नेता बिक्रमजीत सिंह मजिठिया ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने अपनी गिरफ्तारी और रिमांड के आदेश को अवैध ठहराने की मांग की है। मजिठिया का आरोप है कि उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर राजनीतिक द्वेष से प्रेरित है। उन्होंने गिरफ्तारी की प्रक्रिया में कानूनी उल्लंघनों का भी उल्लेख किया है, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।
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बिक्रमजीत सिंह मजिठिया ने हाई कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती दी

याचिका में गिरफ्तारी के आदेश को अवैध ठहराने की मांग

जालंधर(नरिंदर वैद)- अकाली दल के नेता बिक्रमजीत सिंह मजिठिया ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने अपनी गिरफ्तारी और रिमांड के आदेश को अवैध घोषित करने की मांग की है। यह याचिका भारतीय न्याय संहिता बीएनएसएस 2023 की धारा 528 के तहत प्रस्तुत की गई है, जिसमें 26 जून 2025 को मजिस्ट्रेट किरनदीप सिंह द्वारा जारी रिमांड आदेश को रद्द करने की अपील की गई है।


मजिठिया के अनुसार, उनके खिलाफ 25 जून 2025 को मोहाली के एफएस -1, विजिलेंस ब्यूरो थाने में एफआईआर नंबर 22 दर्ज की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह एफआईआर पूरी तरह से राजनीतिक द्वेष और प्रतिशोध से प्रेरित है। उन्होंने वर्तमान सत्तारूढ़ दल पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें केवल इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह सरकार के आलोचक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं।


याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्हें 25 जून को अमृतसर स्थित उनके निवास से गिरफ्तार किया गया, लेकिन गिरफ्तारी की प्रक्रिया में कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया। वीडियो रिकॉर्डिंग के अनुसार, उन्हें सुबह 9:00 बजे हिरासत में लिया गया, जबकि आधिकारिक गिरफ्तारी 11:20 बजे दिखाई गई। इसका मतलब है कि उन्हें बिना वैध आदेश के दो घंटे तक अवैध हिरासत में रखा गया। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि उन्हें 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया गया, जो कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।


याचिका में रिमांड आवेदन को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि जांच एजेंसी के पास न तो कोई ठोस आधार था और न ही कोई तत्काल आवश्यकता, फिर भी रिमांड मांगा गया। इस कारण, याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह रिमांड आदेश को निरस्त करे, क्योंकि यह न केवल अवैध है बल्कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।