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बिहार की मतदाता सूची में समावेशन की कमी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को समावेशन का दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी थी, लेकिन बिहार की मतदाता सूची में 65 लाख नामों को हटाने से यह सलाह नजरअंदाज होती दिख रही है। आयोग ने मतदाताओं को अपने नाम की जांच करने और आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन करने के लिए कहा है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि इससे चुनाव प्रक्रिया में अविश्वास बढ़ सकता है। जानें इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की क्या राय है और निर्वाचन आयोग की कार्रवाई पर क्या सवाल उठ रहे हैं।
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बिहार की मतदाता सूची में समावेशन की कमी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

सुप्रीम कोर्ट की सलाह का उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि उसका दृष्टिकोण निष्कासन के बजाय समावेशन होना चाहिए। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि एसआईआर के बाद बिहार की मतदाता सूची का प्रारूप जारी करते समय आयोग ने इस सलाह का पालन नहीं किया है।


पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के संदर्भ में निर्वाचन आयोग को एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आयोग का दृष्टिकोण समावेशन होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि आयोग ने इस सलाह को नजरअंदाज कर दिया है। बिहार की मतदाता सूची का प्रारूप 65 लाख से अधिक नामों को हटाते हुए तैयार किया गया है। आयोग ने सभी मतदाताओं से कहा है कि वे अपने नाम की जांच आयोग के पोर्टल पर करें। यदि नाम गायब है, तो उन्हें आवश्यक दस्तावेजों के साथ अपना नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन करना होगा। नए मतदाता, जो अक्टूबर तक 18 वर्ष के हो जाएंगे, को भी इसी तरह की सलाह दी गई है। इसका मतलब है कि यदि आप अपना मताधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, तो इसके लिए आवश्यक कदम उठाना आपकी जिम्मेदारी है।


यह दृष्टिकोण समावेशन का नहीं है। एक समृद्ध और जीवंत लोकतंत्र वह होता है, जहां व्यक्तियों को अपने अधिकारों का उपयोग करने के लिए सक्षम बनाने की जिम्मेदारी राज्य या संवैधानिक संस्थाओं पर होती है। भारत के गरीब और आधुनिक सुविधाओं से वंचित व्यक्तियों से यह अपेक्षा करना कि वे खुद को वोटर लिस्ट में दर्ज कराने के लिए प्रयास करें, एक अभिजात्य दृष्टिकोण का संकेत है।


एसआईआर के दौरान आयोग ने आधार कार्ड को प्राथमिक दस्तावेज नहीं मानकर भी इसी दृष्टिकोण को दर्शाया था। जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर टिप्पणी की, तो यह स्पष्ट होता है कि उसे भी इस दृष्टिकोण का आभास हुआ होगा। निर्वाचन आयोग ने इस पर ध्यान नहीं दिया और संकेत दिया कि वह एसआईआर के मामले में किसी सलाह को सुनने के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा, वह इस प्रक्रिया में विपक्षी दलों से संवाद करने के लिए भी तैयार नहीं है। यह स्थिति चिंताजनक है और इससे भारत की चुनाव प्रक्रिया में अविश्वास बढ़ेगा, जो एक गंभीर समस्या होगी।