बिहार की राजनीति में जमीन और आरोपों का नया मोड़
बिहार की सियासत में उठापटक
बिहार की राजनीतिक स्थिति में गठबंधनों की गतिविधियाँ तेज हो गई हैं, जबकि पुराने आरोपों का दौर भी फिर से शुरू हो गया है। इस बार मामला केवल राजनीतिक आरोपों तक सीमित नहीं है, बल्कि जनता के नाम पर असली जमीन पर कब्जे की बात भी उठ रही है।जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने फुलवारीशरीफ में एक सभा के दौरान ऐसा बयान दिया, जिसने राजद और जदयू के बीच चुनावी संघर्ष को फिर से जीवित कर दिया। उन्होंने संकेत दिया कि यदि एनडीए की सरकार बनती है, तो लालू प्रसाद यादव की फुलवारीशरीफ में स्थित छह एकड़ जमीन को जब्त कर भूमिहीनों के लिए आवासीय योजना में बदला जाएगा।
इस बयान का प्रभाव केवल मंच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह गरीबों के अधिकारों और राजनीतिक पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाने लगा है।
नीरज कुमार ने राजद सुप्रीमो पर कटाक्ष करते हुए कहा कि लालू यादव का उद्देश्य कभी जनसेवा नहीं रहा, बल्कि उन्होंने सत्ता का उपयोग अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए किया। उन्होंने 2004 से 2009 के बीच के "नौकरी के बदले जमीन" मामले को विशेष रूप से निशाने पर लिया और कहा कि अब समय आ गया है कि जिनके नाम पर राजनीति की गई, उनके जीवन स्तर में वास्तविक बदलाव लाया जाए।
जैसे ही यह बयान सामने आया, राजद की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया आई। पार्टी प्रवक्ता चितरंजन गगन ने इसे एक "चुनावी ड्रामा" करार दिया और कहा कि 2025 में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार बनेगी, तब मौजूदा सरकार की वास्तविक भ्रष्टाचार की परतें खुलेंगी। उन्होंने केंद्र की एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि चुनावी समय में लालू परिवार को निशाना बनाना एक सुनियोजित रणनीति है।
गौरतलब है कि नौकरी के बदले जमीन का मामला पहले से ही जांच एजेंसियों की निगरानी में है। ईडी ने अब तक लालू परिवार के कई सदस्यों से पूछताछ की है, जिनमें राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप और मीसा भारती शामिल हैं। आरोप है कि रेल मंत्री के कार्यकाल में सरकारी नौकरियों के बदले लालू यादव के परिवार को रियायती दरों पर ज़मीन दी गई।