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बिहार की राजनीति में तेज प्रताप यादव का विवाद: लालू यादव का निर्णय और उसके प्रभाव

बिहार की राजनीति में तेज प्रताप यादव के निष्कासन ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। लालू यादव के इस निर्णय के पीछे पारिवारिक मूल्यों और नैतिकता का सवाल है। क्या यह निर्णय व्यक्तिगत विवादों का परिणाम है या चुनावी रणनीति का हिस्सा? जानें तेज प्रताप और लालू के रिश्ते में सुधार की संभावनाएं और इस विवाद का राजनीतिक प्रभाव।
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बिहार की राजनीति में तेज प्रताप यादव का विवाद: लालू यादव का निर्णय और उसके प्रभाव

बिहार की राजनीतिक हलचल

Bihar politics: मई 2025 में तेज प्रताप यादव को राष्ट्रीय जनता दल और उनके परिवार से बाहर करने का निर्णय लालू यादव द्वारा लिया गया, जिसने राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी। तेज प्रताप और अनुष्का यादव के विवाद के बाद, लालू ने अपने बेटे को परिवार और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला किया। उन्होंने इसे गैरजिम्मेदाराना आचरण और पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए यह कदम उठाया। इस स्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या लालू यादव तेज प्रताप के साथ अपने रिश्ते को अपने साले साधु यादव और सुभाष यादव के साथ बनाए रखेंगे?


लालू यादव के पारिवारिक रिश्ते

वास्तव में, वैचारिक और व्यक्तिगत मतभेदों के कारण लालू यादव ने अपने साले साधु यादव और सुभाष यादव से भी दूरी बना ली थी। साधु यादव, जो कभी राजद के प्रमुख नेता थे, को 2005 में पार्टी से बाहर कर दिया गया था जब उन्होंने लालू-राबड़ी शासन के खिलाफ बगावत की थी। सुभाष यादव ने 2025 में तेज प्रताप के निष्कासन के बाद परिवार को बचाने के लिए 'ड्रामा' करने का आरोप लगाया। इन दोनों मामलों में, लालू ने परिवार और पार्टी की छवि को प्राथमिकता दी और अपने साले के साथ संबंध कभी पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाए।


तेज प्रताप का विवाद: निजी या राजनीतिक?

तेज प्रताप का मामला निजी या राजनीतिक?

तेज प्रताप के निष्कासन की शुरुआत उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़े विवादों से हुई। 2018 में ऐश्वर्या राय से शादी टूटने के बाद से तेज प्रताप लगातार विवादों में रहे हैं। अनुष्का यादव के साथ उनके कथित रिश्ते की पोस्ट ने न केवल परिवार की छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजद की सामाजिक न्याय की छवि को भी प्रभावित किया। लालू ने अपने एक्स पोस्ट में कहा, 'निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की अनदेखी सामाजिक न्याय के हमारे संघर्ष को कमजोर करती है।'


राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीति से जुड़े लोगों की क्या है इसपर राय?

कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे चुनावी रणनीति मानते हैं। भाजपा नेता नितिन नवीन ने इसे 'राजनीतिक स्टंट' करार दिया। उनका दावा है कि लालू ने पहले भी तेज प्रताप की हरकतों को नजरअंदाज किया था। तेज प्रताप के विवाद जैसे जगदानंद सिंह से झगड़ा, होली पर सिपाही के साथ डांस, और कोर्ट जाने की धमकी जैसे घटनाएं पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण बनीं, लेकिन तब कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई। यह सवाल उठता है कि क्या लालू का निर्णय वास्तव में नैतिकता पर आधारित है या यह चुनाव से पहले पार्टी की छवि सुधारने की कोशिश है?


पिता-पुत्र के रिश्ते में सुधार की संभावना

पिता-पुत्र में होगी सुलह?

लालू और तेज प्रताप के बीच का रिश्ता तनावपूर्ण है, लेकिन स्थायी रूप से टूटने की संभावना कम है। साधु और सुभाष के मामले में वैचारिक मतभेद थे, जबकि तेज प्रताप का मामला व्यक्तिगत जीवन से जुड़ा है। तेज प्रताप ने भतीजे इरज लालू यादव के जन्म पर तेजस्वी को बधाई दी, जो परिवार के प्रति उनके स्नेह को दर्शाता है। लालू परिवार में इरज के जन्म जैसे खुशी के मौके पहले भी एकता का कारण बने हैं।

इसके अलावा, राजद के लिए तेज प्रताप की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वे बिहार सरकार में पूर्व स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्री रह चुके हैं और युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं। उनका यूट्यूब चैनल 'एलआर ब्लॉग' और सोशल मीडिया पर उपस्थिति पार्टी के प्रचार का एक महत्वपूर्ण साधन रही है। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद, जब राजनीतिक दबाव कम होगा, तब लालू और तेज प्रताप के बीच सुलह की संभावना बढ़ सकती है।