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बिहार की राजनीति में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा का असर

बिहार की राजनीति में एक नई हलचल देखने को मिल रही है, जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा में अखिलेश यादव शामिल हो रहे हैं। यह यात्रा महागठबंधन को एकजुट करने और नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाने का प्रयास है। यात्रा का मुख्य मुद्दा चुनाव आयोग की एसआईआर प्रक्रिया है, जिसमें लाखों वोटरों के नाम काटे जाने का आरोप है। क्या यह यात्रा नीतीश कुमार की कुर्सी को खतरे में डाल देगी? जानें इस यात्रा के संभावित प्रभाव और बिहार की राजनीति में इसके परिणाम।
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बिहार की राजनीति में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा का असर

बिहार की राजनीतिक हलचल


राकेश सिंह | बिहार की राजनीति हमेशा से गतिशील रही है। यहां नेता अपनी स्थिति बदलते हैं, गठबंधन बनते और टूटते हैं, और चुनावी माहौल हर समय बदलता रहता है। अब 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले एक नई हलचल देखने को मिल रही है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा में अखिलेश यादव का शामिल होना नीतीश कुमार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। यह यात्रा केवल विरोध का एक साधन नहीं है, बल्कि महागठबंधन को एकजुट करने और जनता के मुद्दों को उठाने का एक महत्वपूर्ण मंच है। सवाल यह है कि क्या यह यात्रा नीतीश के लिए मुश्किलें बढ़ाएगी? क्या महागठबंधन नीतीश सरकार की घोषणाओं से थक चुका है? और क्या एसआईआर जैसे मुद्दे वास्तव में आम लोगों की समस्याएं हैं जो चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती हैं?


वोटर अधिकार यात्रा का महत्व

बिहार की राजनीति में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा का असर
प्रबंध संपादक, आईटीवी नेटवर्क, राकेश सिंह।


इस यात्रा की शुरुआत 17 अगस्त को हुई थी, जो बिहार के 25 जिलों से होते हुए 1300 किलोमीटर का सफर तय करेगी। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव हर दिन साथ चलेंगे, जिसमें वामपंथी नेता और महागठबंधन के अन्य सहयोगी भी शामिल होंगे। यह यात्रा सासाराम से शुरू होकर पटना में एक बड़ी रैली के साथ समाप्त होगी। मुख्य मुद्दा चुनाव आयोग की स्पेशल इनटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) प्रक्रिया है। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया में 65-66 लाख वोटरों के नाम काट दिए गए हैं, जिनमें अधिकांश गरीब, दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के लोग शामिल हैं। राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है, जबकि तेजस्वी यादव इसे वोट चोरी का नाम देते हैं।


अखिलेश यादव की एंट्री

अखिलेश यादव की एंट्री ने इस यात्रा को और मजबूती दी है। 28 अगस्त को सीतामढ़ी में वे राहुल और तेजस्वी के साथ शामिल होंगे। अखिलेश उत्तर प्रदेश से हैं, लेकिन बिहार में यादव वोट बैंक मजबूत है। तेजस्वी भी यादव हैं, इसलिए यह जोड़ी यादव समुदाय को एकजुट कर सकती है। अखिलेश ने पहले ही कहा है कि वे राजद को पूरा समर्थन देंगे और भाजपा के घोटालों को उजागर करेंगे। यह नीतीश कुमार के लिए एक बड़ी चुनौती है। एक ओर, नीतीश की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) पहले से ही भाजपा के साथ गठबंधन में कमजोर हो रही है। लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने 12 सीटें जीतीं, लेकिन विधानसभा में उसका आधार कमजोर हो रहा है। नीतीश की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर भी विपक्ष सवाल उठा रहा है। ऊपर से अखिलेश जैसा युवा नेता विपक्ष में आया है, जिससे नीतीश की चुनौती दोगुनी हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है, खासकर ईबीसी और ओबीसी वर्ग में जहां नीतीश का प्रभाव है।


नीतीश सरकार की घोषणाएं

महागठबंधन को नीतीश सरकार की घोषणाओं से कितनी परेशानी है? नीतीश सरकार लगातार बड़े-बड़े ऐलान कर रही है, जैसे 125 यूनिट फ्री बिजली, 1 करोड़ नौकरियों का वादा, और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए योजनाएं। लेकिन विपक्ष का कहना है कि ये सब चुनावी जुमले हैं। तेजस्वी यादव ने कहा है कि नीतीश सरकार 20 साल से सत्ता में है, लेकिन बेरोजगारी, महंगाई और बाढ़ जैसी समस्याएं जस की तस हैं। महागठबंधन के नेता मानते हैं कि ये घोषणाएं जनता को लुभाने की कोशिश हैं, लेकिन असल में काम नहीं हो रहा। जैसे, फ्री बिजली का ऐलान तो अच्छा है, लेकिन गांवों में बिजली कटौती अब भी होती है। नौकरियों का वादा भी खोखला लगता है, क्योंकि युवा अब भी पलायन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा है कि यह यात्रा ऐतिहासिक होगी और नीतीश की कुर्सी खतरे में है। महागठबंधन को लगता है कि नीतीश की ये घोषणाएं उल्टी पड़ रही हैं। वे असल मुद्दों पर बात चाहते हैं, जैसे आरक्षण, बेरोजगारी और शिक्षा।


क्या यात्रा चुनाव में असर डालेगी?

क्या यह यात्रा महागठबंधन को चुनाव जिता पाएगी? यह बड़ा सवाल है। यात्रा से विपक्ष को फायदा जरूर मिल रहा है। राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है, खासकर युवाओं और गरीबों में। तेजस्वी यादव ने कहा है कि वे राहुल को अगला पीएम बनाएंगे, जो गठबंधन की एकता दिखाता है। अखिलेश की एंट्री से उत्तर प्रदेश और बिहार का कनेक्शन मजबूत होता है, जो इंडिया ब्लॉक के लिए अच्छा है। लेकिन चुनौतियां भी हैं। बिहार में जातीय समीकरण बहुत मजबूत हैं। एनडीए के पास भाजपा का हिंदुत्व कार्ड है, जो कुछ इलाकों में काम करता है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी मैदान में है, जो जाति से ऊपर उठकर विकास की बात कर रही है। अगर जन सुराज कुछ सीटें जीतती है, तो महागठबंधन को नुकसान हो सकता है। फिर भी, यात्रा से मोमेंटम बना है। अगर एसआईआर मुद्दा जनता तक पहुंचा, तो विपक्ष को बढ़त मिल सकती है। चुनाव अक्टूबर-नवंबर में हैं, तो अभी समय है, लेकिन यह यात्रा नीतीश को बैकफुट पर जरूर धकेल रही है।


एसआईआर मुद्दा और आम जनता

अब एसआईआर मुद्दे की बात। क्या यह वाकई आम जनता का मुद्दा है? हां, बिल्कुल। एसआईआर चुनाव आयोग की वह प्रक्रिया है जिसमें वोटर लिस्ट को अपडेट किया जाता है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इसमें धांधली हो रही है। मुस्लिम बहुल इलाकों में ज्यादा नाम कटे हैं, जो इंडिया ब्लॉक के वोटर हैं। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबूत दिए कि मृतकों के नाम जुड़े हैं और जिंदा लोगों के हटे हैं। यह आम आदमी का मुद्दा इसलिए है क्योंकि वोट देना लोकतंत्र का आधार है। अगर गरीब का नाम कट जाए, तो वह चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकता। बिहार में गरीबी ज्यादा है, लोग आधार कार्ड या दस्तावेजों की कमी से परेशान हैं। तेजस्वी कहते हैं कि भाजपा चुनाव आयोग से मिली है और वोट चोरी कर रही है। जनता इसे समझ रही है, क्योंकि बेरोजगारी और महंगाई के साथ वोटिंग राइट्स का मुद्दा जुड़ गया है। यह सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि अधिकार की लड़ाई है।


निष्कर्ष

कुल मिलाकर, अखिलेश का शामिल होना नीतीश के लिए बड़ी चुनौती है। महागठबंधन घोषणाओं से तंग है और यात्रा से नई ऊर्जा मिली है। अगर यह मोमेंटम बना रहा, तो चुनाव में क्या हो सकता है, यह सब कुछ जनता के हाथ में है। लेकिन बिहार की राजनीति अप्रत्याशित है। यहां कुछ भी हो सकता है। विपक्ष एसआईआर मुद्दे के जरिए जनता को जगाने का काम कर रहा है। देखना होगा कि 2025 में जनता किसे चुनती है- पुरानी घोषणाओं को या नई उम्मीदों को। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)