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बिहार की राजनीति में हलचल: सम्राट चौधरी पर गंभीर आरोपों की बौछार

बिहार की राजनीति में इन दिनों सम्राट चौधरी पर गंभीर आरोपों की बौछार हो रही है। जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर ने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर 1995 के तारापुर सामूहिक हत्याकांड में फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए रिहाई पाने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही, उन्होंने शिल्पी-गौतम केस में भी सम्राट का नाम जोड़ा है। इस मामले ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है, जहां बीजेपी और एनडीए समर्थक इसे राजनीतिक स्टंट मानते हैं। जानें इस मामले का राजनीतिक महत्व और क्या यह केवल बयानबाजी है या कुछ और।
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बिहार की राजनीति में हलचल: सम्राट चौधरी पर गंभीर आरोपों की बौछार

सम्राट चौधरी पर आपराधिक आरोपों की बौछार

सम्राट चौधरी पर आपराधिक आरोप: बिहार की राजनीतिक स्थिति इन दिनों बेहद गर्म है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर गंभीर आपराधिक आरोप लगाए हैं। उन्होंने मांग की है कि सम्राट को बर्खास्त किया जाए और उन्हें गिरफ्तार किया जाए। प्रशांत का कहना है कि सम्राट ने 1995 के तारापुर सामूहिक हत्याकांड में नाबालिग होने का झूठा प्रमाण पत्र बनवाकर जेल से रिहाई पाई थी। यह आरोप राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है, क्योंकि यह सीधे राज्य सरकार के दूसरे सबसे बड़े नेता को प्रभावित करता है।


शिल्पी-गौतम केस का पुराना जख्म फिर से उभरा
प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी का नाम 1999 के चर्चित शिल्पी-गौतम केस से भी जोड़ा है, जिसने उस समय बिहार की राजनीति में हलचल मचाई थी। इस मामले में पटना के एक अपार्टमेंट में शिल्पी जैन और गौतम सिंह की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हुई थी। गौतम सिंह राष्ट्रीय जनता दल से जुड़े थे और साधु यादव के करीबी माने जाते थे, जो उस समय की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई थे।


प्रशांत किशोर ने मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि सम्राट चौधरी, जिन्हें राकेश कुमार भी कहा जाता है, का नाम इस केस में संदिग्ध अभियुक्त के रूप में सामने आया था। उन्होंने सीबीआई से अपील की कि यह स्पष्ट किया जाए कि सम्राट उस समय जांच के दायरे में थे या नहीं। इसके साथ ही, उन्होंने सम्राट से पूछा कि क्या उनके डीएनए नमूने लिए गए थे और क्या उन्हें कभी अभियुक्त के रूप में नामित किया गया था।


बीजेपी पर सीधा हमला, पुराने गठबंधनों की याद दिलाई
प्रशांत ने यह भी कहा कि सम्राट चौधरी उस समय साधु यादव और राजद के करीबी थे, लेकिन बाद में राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने यह भी कहा कि लालू यादव के प्रभाव के कारण शिल्पी-गौतम केस को सीबीआई द्वारा आत्महत्या करार देकर बंद कर दिया गया था। प्रशांत ने सम्राट से पूछा कि यदि वे निर्दोष हैं, तो उन्होंने अब तक सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट क्यों नहीं किया।


कोर्ट, मीडिया और जनता की नजरें टिकीं
इस घटनाक्रम के बाद बिहार की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई है। जहां बीजेपी और एनडीए समर्थक प्रशांत किशोर के आरोपों को राजनीतिक स्टंट मानते हैं, वहीं जन सुराज पार्टी इसे भ्रष्टाचार और 'जंगलराज' के पुराने जख्मों को उजागर करने का प्रयास बता रही है।

शिल्पी-गौतम केस पहले ही सीबीआई द्वारा बंद कर दिया गया था, लेकिन प्रशांत किशोर द्वारा इसे फिर से चर्चा में लाना यह दर्शाता है कि वे बिहार चुनाव से पहले नैतिकता और पारदर्शिता के मुद्दों पर सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़ा करना चाहते हैं।


चुनावी राजनीति या न्याय की पुकार?
प्रशांत किशोर की रणनीति चाहे जो भी हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में अब व्यक्तिगत जीवन, पुराने केस, और चरित्र पर हमले एक बार फिर मुख्य चुनावी मुद्दा बन गए हैं। सम्राट चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता पर गंभीर आरोप लगने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी और राज्य सरकार क्या कदम उठाती है। क्या यह केवल राजनीतिक बयानबाजी है या किसी बड़े खुलासे की शुरुआत? इसका निर्णय आने वाले समय में होगा।