बिहार की शिक्षा व्यवस्था: सुधार की उम्मीद या निराशा?
बिहार में शिक्षा के हालात पर चर्चा
बिहार में वर्तमान में राजनीतिक समीकरणों पर चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा, चिराग पासवान और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की बातें हो रही हैं। इस बीच, प्रशांत किशोर का नाम भी चर्चा में है। बिहार में बदलाव की बातें जोर पकड़ रही हैं। ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या बिहार के स्कूल और कॉलेजों की स्थिति में सुधार होगा? क्या वह दिन आएगा जब छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरू नहीं जाना पड़ेगा? इस विषय पर न्यूज मीडिया की विशेष श्रृंखला 'दर्द-ए-बिहार' में आज हम बिहार की शिक्षा व्यवस्था की समस्याओं पर चर्चा करेंगे।
नीतीश कुमार का शिक्षा सुधार का दावा
पिछले 20 वर्षों में, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में लगभग स्थायी रूप से बने हुए हैं। उनकी सरकार का दावा है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है। हालांकि, CAG की रिपोर्ट में 70,877 करोड़ रुपये के खर्च का कोई हिसाब नहीं है, जिसमें से 12,623 करोड़ रुपये शिक्षा विभाग के हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि गड़बड़ी कहां है? भारी बजट के बावजूद, स्कूल और कॉलेजों की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हो रहा है? यदि सुधार हुआ है, तो छात्र क्यों उच्च शिक्षा के लिए बाहर जा रहे हैं? बिहार में प्रोफेशनल कोर्सेज के लिए संस्थान क्यों नहीं खुल रहे हैं? Symbiosis, Sharda, Manipal जैसी प्राइवेट यूनिवर्सिटीज बिहार में क्यों नहीं हैं? इस सबके लिए कौन जिम्मेदार है?
दिल्ली यूनिवर्सिटी में बिहार के छात्रों की संख्या
पटना जंक्शन से रोजाना लगभग 150 ट्रेनें गुजरती हैं, जिनमें बड़ी संख्या में छात्र उच्च शिक्षा के लिए अन्य राज्यों की ओर बढ़ते हैं। माता-पिता को लगता है कि बिहार के कॉलेजों में पढ़ाई का मतलब है बच्चों का भविष्य खराब करना। इस साल दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए 2.39 लाख आवेदन आए, जिनमें से 17,173 बिहार से थे।
बिहार में शिक्षा की स्थिति
एक अनुमान के अनुसार, जेएनयू में हर चौथा छात्र बिहार से है। बिहार के 5.52 लाख छात्र देश के अन्य हिस्सों में पढ़ाई कर रहे हैं। यदि एक छात्र उच्च शिक्षा में पांच साल लगाता है, तो हर साल लगभग 1 लाख 10 हजार बच्चे पढ़ाई के लिए बिहार से बाहर निकलते हैं। यह सवाल उठता है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था को किसने बीमार बनाया? क्या 20 साल का समय इसे सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं था?
शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव
बिहार में शिक्षा व्यवस्था के सरकारी दावों की पोल सीतामढ़ी जिले के एक प्राइमरी स्कूल ने खोल दी है। 2003 में स्थापित इस स्कूल में 135 बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी केवल पांच शिक्षकों पर है। गर्मी में बच्चे पेड़ के नीचे बैठते हैं और बारिश में जर्जर इमारत में शरण लेते हैं।
बिहार में सरकारी स्कूलों की स्थिति
बिहार में 183 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनके पास अपनी बिल्डिंग नहीं है। नीतीश सरकार अपने बजट का लगभग 20% शिक्षा पर खर्च करती है, लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति चिंताजनक है। सरकारी आंकड़ों में शिक्षा व्यवस्था की जो तस्वीर दिखाई जा रही है, वह वास्तविकता से बहुत दूर है।
बिहार में उच्च शिक्षा की कमी
बिहार में केवल 39 यूनिवर्सिटी हैं, जबकि पूरे देश में 1,350 यूनिवर्सिटी हैं। पटना कॉलेज और पटना यूनिवर्सिटी की स्थिति भी चिंताजनक है। यहां प्रोफेसरों की भारी कमी है और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
बिहार में शिक्षा व्यवस्था की बर्बादी
बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बर्बादी की कहानी 1960 के दशक के अंत से शुरू हुई, जब जाति की राजनीति ने शिक्षा को प्रभावित किया। आज भी, बिहार के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता
बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए ईमानदारी से काम करने की आवश्यकता है। स्कूलों और कॉलेजों की स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।