बिहार के अस्पताल में स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही का मामला: मरीज को एंटी-रैबीज इंजेक्शन

सिवान में स्वास्थ्य सेवा की लापरवाही
सिवान: बिहार के सिवान जिले से स्वास्थ्य सेवाओं में गंभीर लापरवाही का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। मैरवा रेफरल अस्पताल में बुखार और खांसी की शिकायत लेकर आए एक मरीज को डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की गंभीर गलती का शिकार होना पड़ा। मरीज को सही उपचार देने के बजाय, उसे कुत्ते के काटने के लिए दिया जाने वाला एंटी-रैबीज इंजेक्शन दे दिया गया। इस घटना ने अस्पताल प्रबंधन और चिकित्सकों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
घटना का विवरण
मैरवा थाना क्षेत्र के कबीरपुर गांव के निवासी दिनानाथ ठाकुर ने गुरुवार को बुखार और खांसी के लिए मैरवा रेफरल अस्पताल का रुख किया। जांच के बाद, डॉक्टर ने मरीज को दवा लिखी, लेकिन लापरवाही का आलम यह रहा कि दवा की पर्ची पर 'डॉग बाइट' लिखा गया। इसके साथ ही, एंटी-रैबीज इंजेक्शन का नाम भी लिखा गया।
डॉक्टर का गैर-जिम्मेदाराना बयान
जब इस लापरवाही के बारे में इलाज कर रहे चिकित्सक डॉ. उपेंद्र कुमार से बात की गई, तो उनका जवाब और भी चौंकाने वाला था। उन्होंने पहले रिपोर्टर को डांटा और कहा कि यह लापरवाही नहीं है, बल्कि इंटरनेट की समस्या है। उन्होंने कहा कि मरीज खांसी का इलाज कराने आया था, और इस गलती की जांच कर रहे हैं। इस बयान ने डॉक्टर की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। आखिर दवा लिखने और सुई लगाने के लिए इंटरनेट की आवश्यकता क्यों है? इलाज डॉक्टर की समझ और अनुभव से होना चाहिए, लेकिन यहां लापरवाही का ठीकरा इंटरनेट पर फोड़ा गया।
पीड़ित की कानूनी कार्रवाई की मांग
घटना से नाराज मरीज और उसके परिवार ने कहा कि इस तरह की लापरवाही किसी भी मरीज की जान पर भारी पड़ सकती है। डॉक्टर की गलती से मरीज की जान खतरे में पड़ सकती थी। दिनानाथ ठाकुर ने इस संबंध में मैरवा थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई है और अस्पताल प्रशासन तथा संबंधित डॉक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बिहार के रेफरल अस्पतालों की स्थिति चिंताजनक है। यहां मरीजों की जिंदगी भगवान भरोसे चल रही है। बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएं स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को उजागर करती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिले के कई अस्पतालों में न तो पर्याप्त संसाधन हैं, न ही चिकित्सक अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था किस हद तक चरमराई हुई है।
प्रशासन से कार्रवाई की मांग
इस मामले के सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन पर भी दबाव बढ़ गया है कि वह इस घटना पर कार्रवाई करे। लोगों का कहना है कि केवल जांच का आश्वासन देने से काम नहीं चलेगा। डॉक्टर और स्टाफ पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी स्वास्थ्यकर्मी इतनी बड़ी लापरवाही करने से पहले सौ बार सोचे। एक मरीज जो सामान्य बुखार और खांसी की दवा लेने गया था, उसे एंटी-रैबीज इंजेक्शन लगा दिया। इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था किस कदर लचर है। यह घटना न केवल चिकित्सा जगत पर सवाल उठाती है, बल्कि मरीजों की सुरक्षा पर भी बड़ा खतरा दिखाती है।