बिहार चुनाव 2025: नीतीश कुमार की टोपी राजनीति पर उठे सवाल

बिहार चुनाव 2025 में नीतीश कुमार की रणनीति
Bihar Elections 2025: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल ही में दो वीडियो के कारण चर्चा में हैं, जो राजनीतिक माहौल को गर्म कर रहे हैं, खासकर मुस्लिम मतदाताओं के संदर्भ में। पहले वीडियो में, नीतीश कुमार अपने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान के साथ दिखाई दिए, जहां खान ने उन्हें जालीदार टोपी पहनाने का प्रयास किया, लेकिन नीतीश ने इसे पहनने से मना कर दिया और टोपी वापस जमा खान को दे दी।
कुछ दिनों बाद, एक अन्य वीडियो में नीतीश कुमार ने खुद टोपी पहनकर बिहार शरीफ की खानकाह में चादरपोशी करते हुए नजर आए। इस वीडियो में उन्होंने न केवल टोपी पहनी, बल्कि दरगाह में जाकर चादर भी चढ़ाई। इन दोनों वीडियो के बीच का अंतर राजनीतिक चर्चाओं को और बढ़ा रहा है।
आज खानकाह मुजीबिया, फुलवारीशरीफ में उर्स के मुबारक मौके पर हजरत मखदूम सैयद शाह पीर मुहम्मद मुजीबुल्लाह कादरी रहमतुल्लाह अलैह की मजार पर चादरपोशी की तथा राज्य में अमन, चैन और तरक्की की दुआ मांगी। pic.twitter.com/cqIfedoceM
— Nitish Kumar (@NitishKumar) September 5, 2025
मुस्लिम मतदाता की भूमिका
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का यह कदम एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि वे दिखावे की राजनीति नहीं करते, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के साथ खड़े हैं। बिहार की राजनीति में मुस्लिम मतदाता की महत्वपूर्ण भूमिका है। आंकड़ों के अनुसार, 87 सीटों पर 20% से अधिक और 47 सीटों पर 15-20% मुस्लिम आबादी है। यही कारण है कि नीतीश कुमार हमेशा इस समुदाय को साधने का प्रयास करते रहे हैं।
2015 में जदयू के 7 में से 5 मुस्लिम उम्मीदवार जीत गए थे, लेकिन 2020 में उतारे गए 11 उम्मीदवारों में से कोई भी जीत नहीं सका। इस नुकसान की भरपाई के लिए नीतीश कुमार ने बसपा से जीतकर आए जमा खान को अपनी पार्टी में शामिल कर अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया।
आरजेडी प्रवक्ता का बयान
JDU का कहना है कि नीतीश हमेशा मुस्लिम समाज के लिए काम करते आए हैं। पार्टी के एमएलसी खालिद अनवर ने उदाहरण देते हुए बताया कि नीतीश ने मनेर शरीफ और फुलवारी शरीफ की खानकाहों के जीर्णोद्धार के लिए करोड़ों रुपये दिए। वहीं, विपक्ष, खासकर आरजेडी, नीतीश पर तंज कस रही है। आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, 'जब नीतीश टोपी नहीं पहनते तो आलोचना होती है और जब पहनते हैं तो वह भी केवल राजनीतिक फायदा लेने के लिए। अब कितनी बार अल्पसंख्यक भाइयों को टोपी पहनाएंगे?'
हालांकि, नीतीश अपनी सेक्युलर छवि को बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वक्फ बिल को लेकर मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग उनसे नाराज भी है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार वाकई मुस्लिम वोट बैंक को फिर से अपने पाले में लाने में सफल होंगे या यह केवल 'टोपी राजनीति' बनकर रह जाएगी?