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बिहार चुनाव में घोषणाओं की राजनीति: क्या है असली कीमत?

बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणाओं की आलोचना हो रही है। 75 लाख परिवारों को महिला रोजगार योजना के तहत 10,000 रुपये मिल रहे हैं, लेकिन क्या यह सब कुछ वोट खरीदने की राजनीति का हिस्सा है? आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया है कि यह पैसा कहां से आएगा, जबकि राज्य का कर्ज दोगुना हो चुका है। इस स्थिति में जनता के दीर्घकालिक हितों की बलि चढ़ रही है। जानिए इस राजनीतिक परिदृश्य के पीछे की सच्चाई।
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बिहार चुनाव में घोषणाओं की राजनीति: क्या है असली कीमत?

नीतीश कुमार की घोषणाओं पर सवाल

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणाओं की आलोचना हो रही है। लेकिन जब वोट खरीदने की बात आती है, तो वे भी किसी से पीछे नहीं रहते। यह स्थिति पूरे देश में देखने को मिल रही है। इस प्रतिस्पर्धा में जनता के भविष्य का नुकसान हो रहा है।


महिला रोजगार योजना का प्रभाव

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, 75 लाख परिवारों को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 10,000 रुपये मिले हैं, जिससे त्योहारों का माहौल और भी उत्साहपूर्ण हो गया होगा। आगामी किस्तों में लाखों अन्य महिलाओं के खातों में भी इतनी ही राशि भेजी जाएगी। राज्य सरकार ने इस योजना पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है। इसके साथ ही, नीतीश कुमार की सरकार ने लगभग 15 ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनसे सालाना बजट पर 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। पिछले बजट का आकार 3.15 लाख करोड़ रुपये था। मुख्यमंत्री की हालिया घोषणाओं से लगभग 15 प्रतिशत राशि खर्च होगी। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के अनुसार, चुनाव से पहले केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित योजनाओं की कुल राशि सात लाख करोड़ रुपये से अधिक है।


कर्ज का बढ़ता बोझ

यादव का सवाल महत्वपूर्ण है: आखिर यह पैसा आएगा कहां से? हाल ही में सीएजी ने राज्यों के कर्ज के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें बताया गया है कि कोरोना काल के बाद से बिहार का कर्ज दोगुना हो गया है। यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 39 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। वर्तमान में जो उपहार बांटे जा रहे हैं, उनके लिए अतिरिक्त राजस्व का स्रोत स्पष्ट नहीं है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कर्ज लेकर किया जाएगा। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ऋण के साथ ब्याज और मूलधन चुकाने की वार्षिक चुनौती बढ़ती जा रही है।


राजनीति में चिंता का अभाव

इसका परिणाम यह है कि कल्याणकारी योजनाओं में निवेश की क्षमता घटती जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय राजनीति में इस विषय पर किसी की चिंता नहीं है। तेजस्वी यादव भले ही नीतीश की घोषणाओं की आलोचना कर रहे हों, लेकिन जब वोट खरीदने की बात आती है, तो वे भी किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतते। यह स्थिति पूरे देश में व्याप्त है। नेता मतदाताओं को तात्कालिक खुशी देकर अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित कर रहे हैं, लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में जनता के दीर्घकालिक हितों की बलि चढ़ रही है।