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बिहार में किशोर न्याय बोर्ड ने सुधारात्मक सजा का अनूठा उदाहरण पेश किया

बिहार के गोपालगंज में किशोर न्याय बोर्ड ने एक अनूठा कदम उठाते हुए एक नाबालिग को शराब तस्करी के आरोप में जेल भेजने के बजाय सुधारात्मक सजा दी। इस मामले में, किशोर को थावे मंदिर में सेवा करने का अवसर दिया गया, जिससे उसे समाज में पुनः शामिल होने का मौका मिला। प्रधान न्यायिक दंडाधिकारी ने इस निर्णय के पीछे की सोच को साझा किया, जिसमें उन्होंने किशोरों को सुधारने का महत्व बताया। जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे की मानवता।
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किशोर न्याय बोर्ड की मानवता

भारत के कानूनी इतिहास में न्याय का अर्थ केवल दंड नहीं है; कभी-कभी यह सुधार का मार्ग भी प्रशस्त करता है। बिहार के गोपालगंज में किशोर न्याय बोर्ड ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जहां एक नाबालिग को शराब तस्करी के आरोप में जेल भेजने के बजाय सुधारात्मक सजा दी गई।


यह मामला उत्तर प्रदेश से बिहार में शराब की तस्करी से संबंधित था। पिछले वर्ष एक किशोर को एक अन्य व्यक्ति के साथ अवैध शराब ले जाते समय पकड़ा गया। जबकि उसका साथी वयस्क था और उसे जेल भेज दिया गया, किशोर का मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पास गया। सुनवाई के दौरान, किशोर ने अपने अपराध को स्वीकार किया और बताया कि वह तस्करों के प्रभाव में आकर और पैसों के लालच में यह कदम उठाया।


प्रधान न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) ने इस मामले को केवल अपराध के दृष्टिकोण से नहीं देखा, बल्कि उन्होंने एक युवा जीवन को बचाने की संभावना को भी ध्यान में रखा। उनका मानना था कि किशोर अपराधियों को समाज से अलग करने के बजाय, उन्हें समाज में शामिल करना आवश्यक है। यदि उन्हें पहली गलती पर सुधारने का अवसर दिया जाए, तो वे पुनः अपराध की ओर नहीं लौटेंगे।


इसी सोच के आधार पर, बोर्ड ने नाबालिग को सात दिनों तक थावे मंदिर में सफाई करने की सजा दी, जहां सेवा, अनुशासन और नैतिकता के मूल्यों को आत्मसात किया जा सके।