बिहार में बढ़ती कॉन्ट्रैक्ट किलिंग: एक संगठित अपराध का उदय
बिहार में अपराध का नया चेहरा
बिहार में अपराध की स्थिति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। यह अब केवल खेतों और खलिहानों का प्रदेश नहीं रह गया है, बल्कि यह अब हत्या के सौदागरों की एक संगठित मंडी बन चुका है। पहले जहां हत्या व्यक्तिगत भावनाओं या रंजिशों का परिणाम होती थी, वहीं अब यह एक व्यवस्थित 'कॉन्ट्रैक्ट किलिंग' प्रणाली में बदल गई है। हाल के पुलिस आंकड़े इस गंभीर स्थिति की पुष्टि करते हैं। जनवरी से जून 2025 के बीच 1376 हत्याएं दर्ज की गई हैं, जो दर्शाती हैं कि हर महीने औसतन 229 लोग अपनी जान गंवा रहे हैं, यानी हर चौथे घंटे एक हत्या हो रही है। जुलाई के पहले 22 दिनों में भी इस संख्या में वृद्धि हुई है, जिसमें पटना में 11 हत्याओं में से 4 सुपारी पर की गई हैं।अब सवाल यह नहीं है कि किसकी हत्या हुई, बल्कि यह है कि कौन-कौन सुपारी पर हत्या करवाता है और इसके लिए कितना भुगतान करता है। पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, बिहार में 150 से अधिक पेशेवर शूटरों की हिट लिस्ट तैयार की गई है। ये शूटर किसी एक गैंग के प्रति वफादार नहीं हैं, बल्कि जहां से पैसा मिलता है, वहीं निशाना बनाते हैं। इन किलरों की सुपारी रकम 20,000 से लेकर 10 लाख रुपये तक हो सकती है। प्रेम प्रसंग, जमीन विवाद, राजनीतिक दुश्मनी या गैंगवार—हर समस्या का समाधान अब कॉन्ट्रैक्ट किलिंग के माध्यम से किया जा रहा है।
राज्य के लगभग 1380 थानों में दर्ज हत्या के मामलों में से 30 प्रतिशत से अधिक में सुपारी हत्या की पुष्टि होती है। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि पुलिस मुख्यालय के पास इस विशेष प्रकार की हत्याओं का कोई अलग रिकॉर्ड नहीं है। इसका मतलब यह है कि ये मौतें पैसे के लेन-देन पर आधारित हैं, लेकिन सिस्टम इन पर सही तरीके से नजर नहीं रख पा रहा है। अपराध विशेषज्ञों का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट किलिंग कोई नया चलन नहीं है, लेकिन अब यह एक संगठित व्यवसाय बन चुका है। पहले हत्या व्यक्तिगत दुश्मनी का परिणाम होती थी, अब भुगतान होते ही ट्रिगर दबा दिया जाता है।