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बिहार में महिला वोटरों की भूमिका: चुनावी राजनीति में बदलाव की आवश्यकता

बिहार में महिला वोटरों की संख्या 3.5 करोड़ से अधिक है, जो चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि कैसे महिलाएं राजनीतिक दलों के लिए किंगमेकर बन गई हैं और उनकी भागीदारी में कमी के कारणों पर भी विचार करेंगे। क्या 2025 के चुनावों में महिलाएं अधिक टिकट प्राप्त करेंगी? जानें इस महत्वपूर्ण विषय पर और अधिक जानकारी।
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बिहार में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति

बिहार में वर्तमान में तीन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा हो रही है। पहला, चुनाव आयोग चुनाव की तारीखों की घोषणा कब करेगा? दूसरा, इस बार राज्य की महिला मतदाताओं का समर्थन किसे मिलेगा? तीसरा, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी से कौन उम्मीदवार बनेगा? जनसुराज पार्टी के उम्मीदवारों की सूची आने के बाद यह स्पष्ट होगा कि चुनाव चिन्ह 'स्कूल बैग' किसे लाभ या हानि पहुंचाएगा। आज हम बिहार की महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिन्हें सभी राजनीतिक दल किंगमेकर के रूप में देख रहे हैं। यह सच है कि राजनीतिक दल चुनावों में आधी आबादी का वोट चाहते हैं, लेकिन उन्हें टिकट देने में संकोच करते हैं।


महिला मतदाताओं का प्रभाव

इस बार हर राजनीतिक गठबंधन और दल की नजर जीतने वाले उम्मीदवारों पर है। सवाल यह है कि 2025 में बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में कितनी महिलाएं टिकट प्राप्त करेंगी? और उनमें से कितनी विधानसभा में पहुंच पाएंगी? बिहार में किसी राजनीतिक दल के अध्यक्ष की कुर्सी पर कोई महिला क्यों नहीं है? आजादी के बाद से केवल राबड़ी देवी को ही महिला मुख्यमंत्री का दर्जा मिला। लेकिन सामान्य परिवार की किसी महिला को मुख्यमंत्री बनने का अवसर क्यों नहीं मिला? कब आएगा वह दिन जब बिहार की विधानसभा में आधी सीटें महिलाओं के लिए होंगी?


2020 चुनाव में महिला मतदाताओं का योगदान

बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या 3.5 करोड़ से अधिक है। यदि इनमें से आधा वोट भी किसी एक राजनीतिक दल को मिल जाता है, तो वह अपनी सरकार बना सकता है। 2020 के बिहार चुनाव में NDA को 1.57 करोड़ वोट मिले, जबकि महागठबंधन को 1.56 करोड़ वोट मिले। पिछले चुनावों के रुझान यह दर्शाते हैं कि बिहार में महिलाओं का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। 2020 में 243 विधानसभा सीटों में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया।


महिलाओं के लिए योजनाएं

नीतीश सरकार ने महिलाओं की राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए पंचायत स्तर पर 50% आरक्षण लागू किया है। इसके परिणामस्वरूप पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी 55% तक पहुंच गई है। तेजस्वी यादव ने महागठबंधन की सरकार बनने पर माई-बहिन योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी महिलाओं के लिए कई वादे कर चुकी है।


महिलाओं की विधानसभा में उपस्थिति

आजादी के बाद से 1952 से 2020 तक बिहार विधानसभा में लगभग 315 महिलाएं पहुंची हैं, जबकि पुरुष विधायकों की संख्या लगभग 4700 है। राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनने का अवसर इसलिए मिला क्योंकि लालू प्रसाद यादव को जेल जाना पड़ा। बिहार की राजनीति में सफल महिलाएं अक्सर विरासत की राजनीति को आगे बढ़ा रही हैं।


महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में कमी

बिहार के अर्ध-सामंती समाज में महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में भूमिका निभाने का बहुत कम अवसर मिला है। सामान्य परिवारों की महिलाएं अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित रहीं। हालांकि, पिछले 20-25 वर्षों में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।


महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का भविष्य

महिलाओं को मतदान का अधिकार मिलने के बाद भी, संसद और विधानसभाओं में उनकी उपस्थिति बहुत कम है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम से महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का रास्ता खुलता है, लेकिन यह कानून कब लागू होगा, यह अभी भी एक सवाल है।


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