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बिहार विधानसभा चुनाव: एक्जिट पोल की परंपरा में बदलाव

बिहार विधानसभा चुनाव के एक्जिट पोल के संदर्भ में हाल के दिनों में मीडिया की भूमिका में बदलाव आया है। पहले जहां सभी चैनल एक्जिट पोल के नतीजे दिखाते थे, अब वे इससे दूरी बना रहे हैं। इस लेख में जानें कि क्यों मीडिया समूह एक्जिट पोल के अनुमानों से बच रहे हैं और इसके पीछे के कारण क्या हैं। क्या यह बदलाव चुनावी रणनीतियों में एक नया मोड़ है? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
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बिहार विधानसभा चुनाव: एक्जिट पोल की परंपरा में बदलाव

बिहार विधानसभा चुनाव के एक्जिट पोल का विश्लेषण

बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में लगभग 20 एक्जिट पोल के अनुमान सामने आए हैं, जिन्हें विभिन्न चैनलों पर प्रसारित किया गया। इसके साथ ही, सोशल मीडिया पर भी कई एक्जिट पोल के आंकड़े साझा किए गए हैं। कई यूट्यूब चैनलों ने अपने-अपने अनुमान प्रस्तुत किए हैं। लेकिन एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ है कि देश के प्रमुख मीडिया समूह एक्जिट पोल से दूर रह गए हैं। पहले, सभी मीडिया समूह एक्जिट पोल आयोजित करते थे या किसी एजेंसी के साथ मिलकर उनके परिणाम अपने चैनलों पर दिखाते थे। हर मीडिया हाउस का किसी न किसी एजेंसी के साथ तालमेल होता था, जिसके ओपिनियन पोल चुनाव से पहले और मतदान के अंतिम दिन एक्जिट पोल के नतीजे दिखाए जाते थे। यह मीडिया के लिए चुनाव परिणामों की तरह महत्वपूर्ण होता था और इसे बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता था।


एक्जिट पोल की नई स्थिति

हालांकि, हाल के दिनों में यह परंपरा बदलती दिख रही है। इस बार किसी भी न्यूज चैनल ने अपना एक्जिट पोल सर्वे नहीं दिखाया। किसी एजेंसी के साथ किसी चैनल का नाम भी नहीं जुड़ा था। सभी चैनलों ने एक्जिट पोल के अनुमान तो दिखाए, लेकिन किसी ने उनकी जिम्मेदारी नहीं ली। सभी ने यह स्पष्ट किया कि यह उनका एक्जिट पोल नहीं है और न ही उन्होंने किसी एजेंसी के साथ टाई अप किया है। यह केवल एजेंसी का अनुमान है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी ने केवल एक एजेंसी का सर्वे नहीं बताया, बल्कि सभी ने कई एजेंसियों के अनुमानों को मिलाकर पोल ऑफ पोल्स प्रस्तुत किया। एक न्यूज एजेंसी ने जरूर मैटराइज के साथ मिलकर एक्जिट पोल कराया, जबकि एक अन्य बड़ा मीडिया समूह ने अपने अनुमान साझा किए।


मीडिया समूहों की रणनीति

अब सवाल उठता है कि मीडिया समूहों और न्यूज चैनलों ने ऐसा क्यों किया? इसका मुख्य कारण एक्जिट पोल अनुमानों का बार-बार गलत साबित होना है। चैनलों का मानना है कि पिछले कई चुनावों में एक्जिट पोल के अनुमान गलत साबित हुए हैं। उनका कहना है कि ओपिनियन पोल का गलत होना समझ में आता है, लेकिन एक्जिट पोल कैसे पूरी तरह से गलत हो सकते हैं? इसके अलावा, ओपिनियन पोल के अनुमानों पर पार्टियों का ध्यान नहीं होता, क्योंकि उन्हें पता होता है कि चुनाव के दौरान जनता कुछ भी कह सकती है। लेकिन मतदान के बाद एक्जिट पोल के आंकड़ों पर सभी का ध्यान होता है। इसका कारण यह है कि एक्जिट पोल के दो या तीन दिन बाद असली नतीजे आते हैं, और यदि अनुमान गलत साबित होता है, तो उसका जवाब देना मुश्किल हो जाता है। इसलिए चैनल अब एक्जिट पोल से दूरी बना रहे हैं।