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बिहार विधानसभा चुनाव में सियासी टकराव: प्रशांत किशोर और संजय जायसवाल के बीच विवाद

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच प्रशांत किशोर और भाजपा सांसद संजय जायसवाल के बीच विवाद ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। जायसवाल ने किशोर पर शराब कंपनियों से पैसे लेने का आरोप लगाया है, जबकि किशोर ने जायसवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये आरोप-प्रत्यारोप चुनावी रणनीतियों से आगे बढ़कर मतदाताओं की जिंदगी पर क्या असर डालेंगे।
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बिहार में चुनावी माहौल गरम

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं। इस बार जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर और भाजपा सांसद संजय जायसवाल के बीच विवाद उभरा है। यह बहस अब आम जनता और मतदाताओं पर किस प्रकार का प्रभाव डालेगी, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न बन गया है।


भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने प्रशांत किशोर पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि किशोर शराब कंपनियों से वित्तीय सहायता ले रहे हैं और उनका उद्देश्य केवल वोटों को विभाजित करना है। जायसवाल का दावा है कि किशोर अपनी पार्टी 'जन सुराज पार्टी' की स्थापना के साथ राजनीतिक धोखा दे रहे हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि पार्टी का गठन अगस्त 2022 में दिल्ली में हुआ, जबकि इसका बिहार में लॉन्च अक्टूबर 2024 में किया गया।


जायसवाल ने यह भी कहा कि जन सुराज पार्टी के प्रचार सामग्री में पार्टी अध्यक्ष और महासचिव के नाम बिहार के लोगों के लिए अपरिचित हैं। उनके अनुसार, यह सब बिहार की जनता को गुमराह करने की एक रणनीति का हिस्सा है।


हाल ही में, प्रशांत किशोर ने संजय जायसवाल पर आरोप लगाया था कि उन्होंने पश्चिम चंपारण में पेट्रोल पंप के लिए सड़क का मार्ग बदलवाने का प्रयास किया। इस पर जायसवाल ने किशोर को कानूनी नोटिस भेजकर सबूत मांगे हैं। किशोर ने जवाब दिया है, लेकिन जायसवाल इसे संतोषजनक नहीं मानते और आगे की कानूनी कार्रवाई की संभावना जताई है।


इससे पहले, किशोर ने बिहार के कई अन्य नेताओं पर भी भ्रष्टाचार और अनुचित प्रथाओं के आरोप लगाए हैं, जिनमें भाजपा के बिहार अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और मंत्री अशोक चौधरी शामिल हैं। किशोर के ये आरोप चुनावी माहौल को और भी गर्म कर रहे हैं।


इन विवादों के बीच, यह देखना बाकी है कि बिहार की जनता इस राजनीतिक लड़ाई से कितनी प्रभावित होगी। क्या ये आरोप-प्रत्यारोप चुनावी रणनीतियों से आगे बढ़कर मतदाताओं की जिंदगी पर असर डालेंगे? राजनीतिक दल अपने हितों के लिए किस हद तक जाएंगे, यह भी आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।