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बीजेपी और एनडीए में नए उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया तेज़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के बाद, बीजेपी और एनडीए ने नए उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। चुनाव आयोग ने 32 दिनों के भीतर चुनाव संपन्न कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। चर्चा में रामनाथ ठाकुर का नाम सबसे आगे है, जो अति-पिछड़े नाई समुदाय से आते हैं। अन्य संभावित दावेदारों में जेपी नड्डा, हरिवंश नारायण, और वसुंधरा राजे शामिल हैं। जानें इस चुनाव की पूरी जानकारी और संभावित उम्मीदवारों के बारे में।
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उपराष्ट्रपति का इस्तीफा और चुनाव प्रक्रिया

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के बाद, बीजेपी और एनडीए ने नए उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। चुनाव आयोग ने इस निर्वाचन प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है, जिसमें 32 दिनों के भीतर चुनाव संपन्न होना आवश्यक है।


इस समय चर्चा में सबसे आगे नाम है रामनाथ ठाकुर का, जो केंद्र में कृषि राज्य मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के पुत्र हैं। वे अति-पिछड़े नाई समुदाय से आते हैं, और बीजेपी इस विकल्प पर ध्यान दे रही है। खबरों के अनुसार, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रामनाथ के घर जाकर मुलाकात की, जिससे कयास और बढ़ गए हैं।


अन्य संभावित दावेदारों में जेपी नड्डा स्वयं शामिल हैं, जिनके चुने जाने पर मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण, पूर्व राजस्थान सीएम वसुंधरा राजे, बिहार के राज्यपाल मो. अरिफ खान, और मुक्तार अब्बास नकवी भी चर्चा में हैं। कुछ बीजेपी नेताओं ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी संभावित उम्मीदवार के रूप में सुझाया, लेकिन उनके निवर्तमान राज्य की जिम्मेदारी के कारण इस पर तुरंत खंडन किया गया।


चुनाव संविधान के अनुच्छेद 67-71 और उपराष्ट्रपति (चुनाव) नियम, 1974 के तहत 60 दिनों के भीतर आयोजित होना चाहिए, यानी 21 जुलाई के इस्तीफे के बाद 19 सितंबर 2025 तक चुनाव होना अनिवार्य है। एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में पर्याप्त बहुमत है (422 में से 788 सांसद) और उन्हें 394 वोटों की आवश्यकता होगी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी इस बार वर्गीय विविधता और नियुक्तियों में संतुलन स्थापित करना चाहती है, चाहे वह जातिगत प्रतिनिधित्व (रामनाथ ठाकुर), संगठनात्मक ताकत (जेपी नड्डा), या संसदीय अनुभव (हरिवंश) हो। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इन संकेतों को स्थानीय समीकरणों का प्रतिबिंब माना जा रहा है।