Newzfatafatlogo

बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच विवाद से प्रभावित हो रहे हैं पॉलिसीधारक

हाल के विवाद ने अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है, जिससे पॉलिसीधारकों की चिकित्सा सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। मैक्स अस्पताल ने नीवा बुपा के पॉलिसीधारकों को कैशलेस सेवाएं बंद कर दी हैं, जबकि बजाज एलायंस के मामले में भी इसी तरह की स्थिति उत्पन्न हुई। अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप ने आम लोगों की स्वास्थ्य देखभाल की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जानें इस मुद्दे की गहराई और इसके संभावित परिणामों के बारे में।
 | 
बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच विवाद से प्रभावित हो रहे हैं पॉलिसीधारक

बीमा और अस्पतालों के बीच टकराव

यह स्पष्ट है कि अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच चल रही खींचतान ने उन मध्यवर्गीय लोगों की चिकित्सा संबंधी सुरक्षा को प्रभावित किया है, जो निजीकरण के चलते बीमा पॉलिसी पर निर्भर हैं।


हाल ही में कुछ प्रमुख अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच उत्पन्न विवाद ने मेडिकल बीमा धारकों की समस्याओं को बढ़ा दिया है। यह कहा जा सकता है कि इन दोनों लाभकारी क्षेत्रों के बीच संघर्ष में आम पॉलिसीधारक प्रभावित हो रहे हैं। हाल ही में, मैक्स अस्पताल श्रृंखला ने नीवा बुपा के पॉलिसीधारकों को कैशलेस सेवाएं प्रदान करना बंद कर दिया। इसके कुछ दिन बाद, एसोसिएशन ऑफ हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स इंडिया (एएचपीआई) ने अस्पतालों को सलाह दी कि वे बजाज एलायंस के पॉलिसीधारकों के लिए कैशलेस सेवाएं रोक दें। हालांकि, आठ दिन बाद बजाज एलायंस का विवाद सुलझ गया, लेकिन इस घटनाक्रम ने बीमा आधारित स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।


अस्पतालों का कहना है कि कई बीमा कंपनियां इलाज के खर्च का भुगतान करने में आनाकानी करती हैं। दूसरी ओर, बीमा कंपनियों का आरोप है कि अस्पताल पॉलिसीधारकों के बिल को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, जिससे उन्हें वास्तविक खर्च से अधिक का भुगतान करना पड़ता है। बीमा कंपनियों के अनुसार, कोरोना के बाद की अवधि में मेडिकल मुद्रास्फीति 14-15 प्रतिशत रही है, जबकि अस्पतालों का कहना है कि यह दर एक अंक में है, जिसे बीमा कंपनियां बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही हैं। इस खींचतान ने उन मध्यवर्गीय लोगों की चिकित्सा संबंधी सुरक्षा को प्रभावित किया है, जो निजीकरण के शिकार हेल्थ सेक्टर में बीमा पॉलिसी पर निर्भर हैं।


अस्पतालों का आरोप है कि बीमा कंपनियां पॉलिसी की जो फीस वसूलती हैं, उनमें से केवल 60 प्रतिशत का ही इलाज के लिए भुगतान करती हैं। शेष 40 प्रतिशत अन्य मदों में ट्रांसफर कर दिया जाता है। यह आश्चर्यजनक है कि जब यह विवाद बढ़ता जा रहा है और पॉलिसीधारक इसकी कीमत चुका रहे हैं, तब इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट ऑथरिटी ऑफ इंडिया की भूमिका अन्य क्षेत्रों की विनियामक संस्थाओं की तरह ही अदृश्य बनी हुई है। यह ध्यान देने योग्य है कि यह समस्या केवल भारत में नहीं, बल्कि जहां भी हेल्थ केयर सेक्टर का अनियंत्रित निजीकरण हुआ है, वहां यही स्थिति देखने को मिलती है।