बीसीसीआई को राष्ट्रीय खेल विधेयक के तहत लाने की तैयारी, जानें इसके प्रभाव

बीसीसीआई और राष्ट्रीय खेल विधेयक का महत्व
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) अब राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक के दायरे में आएगा, जिसे 23 जुलाई को संसद में पेश किया जाएगा। यह विधेयक बीसीसीआई को प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल बोर्ड (एनएसबी) के अंतर्गत लाने का प्रयास करता है। हालांकि, इस विधेयक के लागू होने के बाद भी बीसीसीआई को सरकारी धन नहीं मिलेगा।
बीसीसीआई की जिम्मेदारियां और स्वायत्तता
खेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यदि यह विधेयक कानून बनता है, तो बीसीसीआई को अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) की तरह देश के कानूनों का पालन करना होगा। बीसीसीआई का मुख्य उद्देश्य क्रिकेट को बढ़ावा देना है, और इसके प्रशासन में किसी भी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होगा।
अधिकारी ने कहा, "बीसीसीआई मंत्रालय से धन नहीं लेता है, लेकिन इसे संसद द्वारा लागू किए गए कानून का पालन करना होगा।" इसके अलावा, बीसीसीआई को विवादों को राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण के समक्ष लाने की आवश्यकता होगी, जो खेल से संबंधित विवादों का समाधान करेगा।
कानूनी दायित्व और विवाद समाधान
यह विधेयक बीसीसीआई और अन्य एनएसएफ की स्वायत्तता को बनाए रखेगा, लेकिन यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण के पास भेजा जाएगा। यह न्यायाधिकरण खेलों से जुड़े सभी विवादों के समाधान का जिम्मेदार होगा, जिसमें चुनाव और चयन से संबंधित मुद्दे भी शामिल हैं। हालांकि, यह विधेयक किसी भी एनएसएफ पर सरकारी नियंत्रण लागू नहीं करता है, बल्कि सरकार का उद्देश्य सुशासन को सुनिश्चित करना है।
लचीली आयु सीमा का प्रावधान
इस विधेयक में कुछ विशेष अपवाद भी शामिल हैं, जैसे कि 70 से 75 वर्ष की आयु तक के प्रशासकों के लिए लचीली आयु सीमा। यह लचीलापन केवल तब लागू होगा जब अंतरराष्ट्रीय महासंघों द्वारा कोई आपत्ति न हो। इसका प्रभाव बीसीसीआई के वर्तमान अध्यक्ष रोजर बिन्नी पर पड़ सकता है, जिन्हें अपने पद पर कम से कम तीन और वर्षों तक कार्य करने का अवसर मिल सकता है।
राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण की स्थापना
इस विधेयक के तहत राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण की स्थापना की जाएगी, जिसका उद्देश्य खेल विवादों का त्वरित और किफायती समाधान प्रदान करना होगा। न्यायाधिकरण का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होगा। इसके निर्णयों को केवल सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी, जिससे न्याय प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा।
विधेयक का उद्देश्य और महत्व
सरकार का कहना है कि इस विधेयक का उद्देश्य शासन और खिलाड़ियों के कल्याण को बढ़ावा देना है, न कि किसी प्रकार का नियंत्रण लागू करना। इस विधेयक को विशेष रूप से 2028 के लॉस एंजेल्स ओलंपिक में क्रिकेट के समावेशन और भारत की 2036 के खेलों की मेज़बानी की आकांक्षाओं को देखते हुए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।
इस विधेयक को लागू करने से भारत को अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर मिलेगा, जिससे खिलाड़ियों के कल्याण और खेल सुधार में भी मदद मिलेगी।