भाजपा का शिक्षा मंत्रालय: महाराष्ट्र में सत्ता और निर्णयों का टकराव

भाजपा और शिक्षा मंत्रालय का विवाद
यह सामान्य धारणा है कि भाजपा जब भी सत्ता में आती है, तो शिक्षा मंत्रालय अपने पास रखती है। यहां तक कि जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और भाजपा की स्थिति मजबूत नहीं थी, तब भी उसने शिक्षा मंत्रालय को अपने पास रखा और मुरली मनोहर जोशी जैसे प्रमुख नेता को इसका मंत्री बनाया। हालांकि, जब बात गठबंधन सरकारों की होती है, तो स्थिति अलग होती है। लेकिन जब भाजपा का अपना मुख्यमंत्री हो और वह बहुमत के करीब हो, तो यह सवाल उठता है कि उसने शिक्षा मंत्रालय अपने पास क्यों नहीं रखा, जबकि शिक्षा सुधार का मुद्दा लगातार उठाया जा रहा है।
महाराष्ट्र में भाजपा की स्थिति
महाराष्ट्र में भाजपा के पास 132 विधायक हैं, जबकि बहुमत के लिए 145 सीटों की आवश्यकता है। यह पहली बार है जब भाजपा इतनी नजदीक बहुमत में है। विपक्ष पूरी तरह से कमजोर है। फिर भी, मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना के दादाजी भुसे को स्कूली शिक्षा का मंत्री नियुक्त किया। यह सोचने वाली बात है कि भाजपा को शिक्षा के क्षेत्र में अपने एजेंडे को लागू करना है, लेकिन मंत्री एकनाथ शिंदे के हैं।
शिक्षा के फैसलों में उलटफेर
इसका परिणाम यह हुआ है कि पिछले छह महीनों में राज्य सरकार ने शिक्षा से संबंधित सात फैसले पलटे हैं, जिनमें से छह स्कूली शिक्षा से जुड़े हैं। इनमें स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का निर्णय और मिड डे मील में मीठा देने का निर्णय भी शामिल है। यह कहा जा रहा है कि भाजपा, संघ और शिवसेना के बीच तालमेल नहीं बन पा रहा है। बिना सोचे-समझे लिए गए निर्णयों को बार-बार पलटा जा रहा है।