भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार की नई उम्मीदें

भारत और अमेरिका के बीच तनाव
हाल के महीनों में भारत और अमेरिका के संबंधों में तनाव बढ़ा था। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय उत्पादों पर टैरिफ लगाने और H-1B वीज़ा शुल्क को 1 लाख डॉलर तक बढ़ाने के निर्णय ने दोनों देशों के बीच मतभेदों को और बढ़ा दिया था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की मुलाकात ने सहयोग और विश्वास बहाली की नई उम्मीदें जगाई हैं।
H-1B वीज़ा पर चिंता
अमेरिका में कार्यरत हजारों भारतीय पेशेवर H-1B वीज़ा पर निर्भर हैं। ट्रंप प्रशासन के आदेश के अनुसार नए वीज़ा आवेदकों को 1 लाख डॉलर की फीस चुकानी होगी, जिससे भारतीय आईटी क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। हालांकि, व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि यह वृद्धि केवल नए आवेदकों पर लागू होगी, मौजूदा वीज़ा धारकों पर नहीं। फिर भी, इस निर्णय ने चिंता और अनिश्चितता को बढ़ा दिया है। जयशंकर और रुबियो की बातचीत में यह मुद्दा प्रमुख रहा।
व्यापार समझौते की दिशा में कदम
भारत और अमेरिका दोनों इस समय एक नए व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल जल्द ही अमेरिकी राजधानी वॉशिंगटन में पहुंचेंगे, जहां दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच समझौते पर चर्चा होगी। जुलाई में अमेरिका द्वारा भारतीय सामान पर 25% टैरिफ लगाने और रूस से तेल खरीद पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने के बाद तनाव बढ़ गया था। लेकिन अब दोनों देश द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty) पर बातचीत कर रहे हैं, जिससे आर्थिक संबंधों को स्थिरता मिल सके।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में मुलाकात
80वें संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान हुई यह मुलाकात रिश्तों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। इससे पहले, दोनों नेता जुलाई में वॉशिंगटन में क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक में मिले थे। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया कि इस बार की बैठक में सकारात्मक बातचीत हुई और दोनों देशों ने भविष्य में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
अमेरिका का दृष्टिकोण
हाल ही में अमेरिकी सीनेट में भारत से जुड़े मुद्दों पर विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा था कि भारत अमेरिका के लिए 'सबसे महत्वपूर्ण साझेदारियों में से एक' है। ट्रंप प्रशासन ने भी यह विश्वास जताया है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौते में कोई बड़ी बाधा नहीं आएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि हालिया निर्णयों से रिश्ते प्रभावित हुए हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच रणनीतिक और आर्थिक सहयोग लंबे समय तक बना रहेगा।