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भारत और अमेरिका के व्यापार वार्ता में चुनौतियाँ और संभावनाएँ

भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत के अगले चरण में कई चुनौतियाँ सामने हैं। क्या भारत अपनी 'लक्ष्मण रेखाओं' और विदेश नीति की संप्रभुता पर समझौता करेगा? इस लेख में हम इन सवालों और संभावनाओं पर चर्चा करेंगे, जो वार्ता के भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं।
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भारत और अमेरिका के व्यापार वार्ता में चुनौतियाँ और संभावनाएँ

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता की स्थिति

ट्रंप प्रशासन ने भारत के प्रति टैरिफ वॉर में कोई ढील नहीं दी है। क्या अगले दौर की वार्ता में वह नरमी दिखाएगा? या भारत अपनी लक्ष्मण रेखाओंऔर विदेश नीति की संप्रभुता पर समझौता करने के लिए तैयार होगा?


जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत के अगले चरण के लिए वॉशिंगटन पहुंचता है, तो उसे वही पुराने सवालों और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिनकी वजह से पिछले पांच दौर की वार्ताएँ सफल नहीं हो पाईं। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या भारत व्यापार के साथ-साथ भू-राजनीतिक मुद्दों पर अमेरिकी मांगों को स्वीकार करेगा, जिन्हें डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन टैरिफ वॉर के माध्यम से लागू करना चाहता है। ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि आयात शुल्क उनके लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसका उपयोग वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए करते हैं। भारत इस दृष्टिकोण का शिकार बन चुका है, क्योंकि रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है।


इस प्रकार, ट्रंप ने भारतीय विदेश नीति को अमेरिकी हितों के अनुरूप ढालने का दबाव बना रखा है। व्यापारिक संबंधों में, उनका प्रशासन भारत की ‘लक्ष्मण रेखाओं’ (कृषि और डेयरी क्षेत्र को अमेरिकी कंपनियों के लिए न खोलने का निर्णय) को नजरअंदाज करने के मूड में नहीं है। एक और बड़ी समस्या ट्रंप का अस्थिर स्वभाव है। चीन के मामले में, ट्रंप प्रशासन ने कुछ ऐसे कदम उठाए, जो पहले से बनी सहमतियों के खिलाफ थे, जिससे वार्ता फिर से ठप हो गई। चीन ने रेयर अर्थ सामग्रियों के निर्यात को नियंत्रित करने की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप ट्रंप प्रशासन ने अपना रुख नरम किया।


हालांकि, चीन के पास कुछ क्षेत्रों में लगभग एकाधिकार होने के कारण वह जवाबी कदम उठाने की स्थिति में है, जबकि भारत के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है। भू-राजनीतिक मामलों में अमेरिका के साथ भारत की निकटता बढ़ी है, फिर भी ट्रंप प्रशासन ने व्यापार में भारत के प्रति कोई रियायत नहीं दी है। इसलिए, सवाल यह है कि क्या वह अब ऐसा करेगा? या भारत अपनी ‘लक्ष्मण रेखाओं’ और विदेश नीति की संप्रभुता पर समझौता करेगा? केवल इन दो स्थितियों में ही वार्ता आगे बढ़ सकती है, अन्यथा छठे दौर की वार्ता का परिणाम भी पहले जैसा ही रह सकता है।