भारत का गणतंत्र दिवस 2026: यूरोपीय नेताओं की उपस्थिति और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की उम्मीदें
गणतंत्र दिवस पर यूरोपीय नेताओं का आगमन
नई दिल्ली। भारत ने 2026 के गणतंत्र दिवस समारोह के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेन और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा 26 जनवरी को मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। यह समारोह केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को अंतिम रूप देना है। दोनों पक्ष 27 जनवरी को होने वाले भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में इस महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और EU के अधिकारी इस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।
भारत की रणनीति: यूरोपीय नेताओं को आमंत्रित करना
गणतंत्र दिवस पर यूरोप के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित करना भारत की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। यह कदम नई दिल्ली के इरादे को स्पष्ट करता है कि वह यूरोप के साथ अपने कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता है।
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की दिशा में प्रगति
भारत और यूरोपीय संघ के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर बातचीत का दौर काफी समय से चल रहा है, लेकिन अब यह समझौता अंतिम रूप लेने के करीब है। 8 दिसंबर को नई दिल्ली में बातचीत फिर से शुरू हुई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों पक्ष इस साल के अंत तक या जनवरी के शिखर सम्मेलन से पहले इस डील को अंतिम रूप देना चाहते हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, जबकि EU की ओर से ट्रेड डायरेक्टर जनरल सबाइन वेयंड इस प्रक्रिया में शामिल हैं।
भारत की चिंताएं: कार्बन टैक्स और स्टील निर्यात
हालांकि बातचीत अंतिम चरण में है, लेकिन कुछ मुद्दे अभी भी हल नहीं हुए हैं। सबसे बड़ा मुद्दा यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) है, जो 1 जनवरी से लागू होगा। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। यदि यह लागू होता है, तो भारत से यूरोप जाने वाले स्टील, एल्युमीनियम और अन्य कार्बन-इंटेंसिव उत्पादों पर भारी टैक्स लगाया जा सकता है।
इसके अलावा, यूरोपीय संघ भारत में अपनी कारों और स्टील के लिए बाजार पहुंच की मांग कर रहा है, जबकि भारत अपने सेवा क्षेत्र के लिए यूरोप में छूट चाहता है। अब देखना होगा कि क्या 26 जनवरी की परेड से पहले इन मुद्दों पर सहमति बन पाती है या नहीं।
CBAM क्या है?
CBAM, यानी ‘कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म’, यूरोपीय संघ का एक नया नियम है। इसके तहत जिन सामानों (जैसे लोहा, स्टील) को बनाने में अधिक कार्बन निकलता है, उन पर यूरोप में अतिरिक्त टैक्स लगाया जाएगा। भारत इसका विरोध कर रहा है क्योंकि इससे भारतीय सामान यूरोप में महंगा हो जाएगा और निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
