भारत का तेजस Mk-2: फ्रांसीसी इंजन से मिलेगी नई ताकत

भारत की रक्षा क्षमताओं में सुधार
भारत, अपने पड़ोसी देशों से उत्पन्न सैन्य चुनौतियों के मद्देनजर, अपनी रक्षा क्षमताओं को लगातार मजबूत कर रहा है। विशेष रूप से स्वदेशी हथियार निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत अब अपने मीडियम वेट फाइटर तेजस Mk-2 के लिए एक नया और अधिक शक्तिशाली इंजन विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इसके लिए, भारत फ्रांस की प्रमुख एयरोस्पेस कंपनी Safran के साथ रणनीतिक साझेदारी की संभावनाओं पर विचार कर रहा है.
तेजस Mk-2 का महत्व
तेजस Mk-2, जिसे मीडियम वेट फाइटर (MWF) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय वायुसेना के पुराने लड़ाकू विमानों जैसे जगुआर, मिराज-2000 और मिग-29 की जगह लेने के लिए तैयार है। इस अत्याधुनिक लड़ाकू विमान का विकास एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) और हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा किया जा रहा है। इसमें अत्याधुनिक रडार सिस्टम, इन्फ्रारेड ट्रैकिंग, बड़ी पेलोड क्षमता, और अस्त्र व ब्रह्मोस-NG जैसी स्वदेशी मिसाइलों को लगाने की क्षमता होगी, जो इसे भारत की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना सकती है.
अमेरिकी इंजन में देरी, फ्रांसीसी विकल्प पर ध्यान
तेजस Mk-2 के लिए पहले अमेरिकी कंपनी GE का F414 इंजन चुना गया था, जिसकी थ्रस्ट क्षमता 98 किलो न्यूटन (kN) है। HAL और GE के बीच इस इंजन का भारत में निर्माण करने के लिए 80% तकनीकी ट्रांसफर का समझौता भी हुआ था। लेकिन आपूर्ति में देरी और लागत के मुद्दों ने भारत को नए विकल्पों की तलाश करने पर मजबूर कर दिया है.
Safran का प्रस्ताव
फ्रांसीसी कंपनी Safran ने तेजस Mk-2 के लिए 110 kN थ्रस्ट क्षमता वाला एक शक्तिशाली इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। इससे विमान की गति, ऑपरेशनल रेंज और वजन उठाने की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है.
भविष्य के लड़ाकू विमानों के लिए सहयोग
Safran पहले से ही HAL के साथ हेलीकॉप्टर इंजनों पर काम कर रही है। इस प्रकार की संभावित साझेदारी न केवल तेजस Mk-2 के लिए, बल्कि भविष्य के फाइटर जेट प्रोग्राम और स्वदेशी इंजन निर्माण में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.
बातचीत के प्रारंभिक चरण में
भारत और Safran के बीच यह सहयोग अभी प्रारंभिक चरण में है, लेकिन यदि यह डील आगे बढ़ती है, तो यह 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है। तेजस Mk-2 के माध्यम से भारत न केवल रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि वैश्विक हथियार बाजार में भी अपनी पहचान को मजबूत कर सकता है.