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भारत का रूस से तेल आयात: अमेरिकी दबाव और आर्थिक प्रभाव

भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखा है, भले ही अमेरिका ने इस पर सवाल उठाए हैं। ट्रंप द्वारा लगाए गए 25% टैरिफ और संभावित जुर्माने के बावजूद, भारतीय कंपनियों के लिए रूस से तेल खरीदना आसान नहीं होगा। यदि ये कंपनियां खरीद बंद करती हैं, तो भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 9-11 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है। जानें इस स्थिति का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा और जुलाई में कच्चे तेल के आयात में आई कमी के पीछे के कारण।
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भारत का रूस से तेल आयात: अमेरिकी दबाव और आर्थिक प्रभाव

भारत का कच्चा तेल आयात

भारत का कच्चा तेल आयात: अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर कई सवाल उठाए हैं। इसके बावजूद, भारतीय तेल कंपनियों ने ट्रंप की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए तेल खरीदना जारी रखा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की और रूस से तेल खरीदने पर जुर्माना लगाने की बात कही। यदि भारतीय कंपनियां रूस से तेल खरीदना बंद करती हैं, तो भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 9-11 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है, जिससे देश को अरबों रुपये का नुकसान हो सकता है। इसलिए, रूस से तेल खरीदना भारत के लिए आसान नहीं होगा।


भारत का सस्ता तेल खरीदने का कदम

भारत ने बड़ी मात्रा में खरीदा सस्ता तेल

भारत, तेल आयात के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, जिसका फायदा उठाते हुए भारत ने रूस से सस्ते तेल की बड़ी मात्रा खरीदी। लेकिन अब अमेरिका के जुर्माने की बात ने स्थिति को बदल दिया है।


अमेरिकी दबाव का असर

दोतरफ़ा दबाव

ट्रंप ने 25% टैरिफ की घोषणा की है, लेकिन जुर्माने की राशि के बारे में अमेरिका ने कोई स्पष्टता नहीं दी है। वैश्विक विश्लेषक केप्लर के शोधकर्ता सुमित रिटोलिया ने इसे 'दोतरफ़ा दबाव' बताया है। एक ओर, यूरोपीय संघ के प्रतिबंध भारतीय रिफ़ाइनरियों को प्रभावित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, अमेरिकी टैरिफ़ का खतरा भारत के रूसी तेल व्यापार को नुकसान पहुँचा सकता है। यह कदम भारत की तेल खरीदने की स्वतंत्रता को कम करता है और लागत में अनिश्चितता पैदा करता है।


जुलाई में कच्चे तेल के आयात में कमी

जुलाई में कच्चे तेल के आयात में कमी

केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में भारत के रूसी कच्चे तेल के आयात में उल्लेखनीय कमी आई है। यह कमी रिफ़ाइनरियों के नियमित रखरखाव और कमजोर मानसून की मांग के कारण भी हो सकती है। सरकारी रिफ़ाइनरियों में यह कमी अधिक दिखाई दे रही है, जबकि निजी रिफ़ाइनरियाँ अब तेल खरीदने के लिए विभिन्न विकल्पों की तलाश कर रही हैं।