भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति: जैश-ए-मोहम्मद की कमजोरियों का विश्लेषण
भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का प्रभाव अब स्पष्ट हो रहा है, विशेषकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन अब जीवित रहने के लिए नए रास्ते खोजने पर मजबूर हैं। उनकी नई फंडिंग रणनीतियाँ और नेतृत्व संकट दर्शाते हैं कि वे हताशा में हैं। जानें कैसे भारत ने अपनी आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को मजबूत किया है ताकि आतंकवाद का पुनरुत्थान न हो सके।
Aug 22, 2025, 11:56 IST
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भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का प्रभाव
भारत की आतंकवाद के खिलाफ निरंतर और प्रभावी कार्रवाई का परिणाम अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। ऑपरेशन सिंदूर और इसके बाद के अभियानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब आतंकवाद को उसकी जड़ों में चोट पहुँचाई जाती है, तो उसका तंत्र कमजोर हो जाता है। वर्तमान में, पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन, जो पहले सीमा पार से आतंक फैलाते थे, अब जीवित रहने के लिए नए रास्ते खोजने पर मजबूर हो गए हैं।
आतंकवादियों की नई रणनीतियाँ
जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों का मस्जिदों के माध्यम से चंदा इकट्ठा करना और डिजिटल वॉलेट्स के जरिए छिपी हुई फंडिंग करना उनकी कमजोरी को दर्शाता है। यह वह समय है जब आतंकवादी अपने असली इरादों को धार्मिक आवरण में छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी ये चालें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से उजागर हो रही हैं।
भारत की रणनीति
भारत की रणनीति केवल आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके साथ ही उनके वित्तीय नेटवर्क, नेतृत्व और प्रचार तंत्र पर भी सीधा प्रहार किया जा रहा है। यही कारण है कि आज ये संगठन नेतृत्व संकट, संसाधन संकट और वैचारिक असमंजस का सामना कर रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर का प्रभाव
ऑपरेशन सिंदूर के बाद, पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को विशेष रूप से गहरी चोट लगी है। भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए इस अभियान ने न केवल पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के नेटवर्क को तहस-नहस किया, बल्कि उनके नेतृत्व और वित्तीय स्रोतों को भी कमजोर कर दिया। इस ऑपरेशन के तहत जैश-ए-मोहम्मद के कई ठिकाने और प्रशिक्षण शिविर ध्वस्त कर दिए गए, जिससे उनकी भर्ती और प्रशिक्षण गतिविधियों पर लगभग रोक लग गई।
नए फंडिंग प्रयास
हालिया रिपोर्टों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद ने अब 313 मस्जिदों के निर्माण के नाम पर 3.91 अरब पाकिस्तानी रुपये जुटाने का अभियान शुरू किया है। यह प्रयास लश्कर-ए-तैयबा की तरह विकेंद्रीकरण मॉडल को अपनाने का प्रतीक है, ताकि उनकी गतिविधियाँ एक ही स्थान पर केंद्रित न रहें। इसके लिए EasyPaisa और Sadapay जैसे मोबाइल भुगतान माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है।
परिवार का फंडिंग नेटवर्क
बताया जा रहा है कि फाउंडर मसूद अजहर का परिवार, विशेषकर उसका भाई तल्हा अल सैफ़ और बेटा अब्दुल्ला अजहर, इस फंडिंग नेटवर्क का संचालन कर रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 250 से अधिक डिजिटल अकाउंट सक्रिय हैं, जिनसे पोस्टर, वीडियो और अजहर के पत्र जारी कर लोगों से चंदा मांगा जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव का प्रभाव
Financial Action Task Force (FATF) की बढ़ती सख्ती के कारण जैश-ए-मोहम्मद और ISI अब खुले बैंकिंग चैनलों की बजाय डिजिटल वॉलेट और गुप्त तरीकों का सहारा ले रहे हैं। यह संकेत है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव ने इन संगठनों के लिए पारंपरिक फंडिंग को लगभग असंभव बना दिया है।
भारत की आक्रामक नीति
बहरहाल, यह स्पष्ट है कि ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को गंभीर झटका दिया है। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन अब जीवित रहने के लिए नए रास्ते खोज रहे हैं, लेकिन उनके प्रयास यह भी दर्शाते हैं कि वे हताशा और कमजोरी की स्थिति में पहुँच चुके हैं। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह अपनी आंतरिक सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को और मजबूत करे ताकि ऐसे संगठनों का पुनरुत्थान संभव न हो सके।